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निम्नलिखित हैं
1. सामायिक-समभाव की साधना करना। 2. चतुर्विंशतिस्तव-चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति करना।
3. वंदना-सद्गुरुओं को नमस्कार करना। . 4. प्रतिक्रमण-दोषों की आलोचना करना।
5. कायोत्सर्ग-शरीर के प्रति ममत्व का त्याग करना।
6. प्रत्याख्यान-आहार आदि का त्याग करना। षडावश्यक के क्रम की वैज्ञानिकता
षडावश्यक के इन सभी अंगों का क्रम वैज्ञानिक ढंग से रखा गया है। सबसे पहला आवश्यक है-सामायिक। समभाव की साधना से जब चित्तवृत्ति स्वच्छ हो जाती है तभी व्यक्ति तीर्थंकरों की स्तुति कर सकता है और उनके गुणों में लीन हो सकता है, अतः सामायिक के बाद दूसरा क्रम चतुर्विंशतिस्तव का रखा गया है। तीर्थंकरों की स्तुति से उसके मन में भक्तिभाव पैदा होता है और वह गुरुजनों, मुनिजनों के चरणों में वंदन-नमस्कार करता है। वंदना करने से विनम्रता बढ़ती है तथा सरलता आती है। सरल व्यक्ति ही अपने कृत दोषों की आलोचना कर सकता है अतः वंदना के बाद प्रतिक्रमण का क्रम रखा गया है। अतीत के दोषों की शुद्धि हो जाने के बाद ही तन और मन की स्थिरता सध सकती है अतः प्रतिक्रमण के बाद कायोत्सर्ग का विधान किया गया है। मन की चंचलता दूर होने पर ही व्यक्ति प्रत्याख्यान कर सकता है। चंचल मन से प्रत्याख्यान (त्याग) कर पाना संभव नही है। अतः कायोत्सर्ग के बाद ही प्रत्याख्यान का क्रम दिया गया है। इस प्रकार इन छः आवश्यकों का क्रम कारण-कार्यभाव की श्रृंखला पर आधारित होने से पूर्ण वैज्ञानिक क्रम है। इन छहों आवश्यक का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार