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धर्म के प्रकार
आत्मशुद्धि के साधन का धर्म कहते हैं। वे साधन अनेक हो सकते हैं, इस दृष्टि से धर्म के भी अनेक प्रकार बताये गए हैं। संक्षेप में एक अहिंसा धर्म है और विस्तार में जाएं तो दस धर्म हो जाते
1. क्षमा 2. मुक्ति
3. · आर्जव 4. मार्दव
5. लाघव 6. सत्य 7. संयम 8. तप
9. त्याग 10. ब्रह्मचर्य। .
इन दस धर्मों को उत्तम धर्म कहा जाता है। ये दस धर्म उत्तम धर्म कहलाने योग्य तभी होते हैं जब ये आत्मशुद्धिकारक तथा पापनिवारक होते हैं। इन दस धर्मों का विधान श्रमण के लिए किया गया है क्योंकि श्रमणों के द्वारा ये निश्चित रूप से आचरणीय होते हैं। पर इसका मतलब यह नहीं कि ये दूसरों के लिए आचरणीय नहीं हैं। सम्यक्दृष्टि श्रावकों को भी संवर और निर्जरा की साधना के लिए इन क्षमा आदि धर्मों का पालन करना चाहिए। 1. क्षमा
दस धर्मों में प्रथम धर्म क्षमा है। क्रोध आदि की उत्पत्ति के साक्षात कारण उपस्थित होने पर अल्पमात्र भी क्रोध नहीं करना तथा मन में भी क्रोध के भाव नहीं लाना उत्तम क्षमा है। जैन परम्परा में अपराधी को भी क्षमा करना तथा अपने अपराधों के लिए क्षमा मांगना साधक का परम कर्त्तव्य माना गया है। जैन श्रमण प्रतिदिन यह उद्घोष करता है
खामेमि सव्व जीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती मे सव्वभूएस, वेरं मज्झ न केणई।।