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है। जिस प्रकार दरवाजा खुला छोड़ देने पर साफ कमरे में आंधी की रेत आती रहती है। अतः वर्तमान का संवर करना आवश्यक है।
भविष्य का प्रत्याख्यान-अतीत का शोधन और वर्तमान का. संवर हाने पर भी यदि भविष्य के लिए प्रत्याख्यान नहीं होता तो शोधन और संवर सुरक्षित नहीं रह सकता। कायोत्सर्ग
___पांचवां आवश्यक कायोत्सर्ग है। कायोत्सर्ग का शाब्दिक अर्थ है-शरीर का त्याग करना। जीवित रहते हुए शरीर का त्याग कर पाना संभव नहीं है अत: यहां शरीर के त्याग का तात्पर्य-शारीरिक चंचलता और शरीर के प्रति होने वाली आसक्ति का त्याग करना है। जैन साधना में कायोत्सर्ग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वहां प्रत्येक अनुष्ठान से पूर्व कायोत्सर्ग करने का विधान है।
दैवसिक, रात्रिक, पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में जिस-जिस काल में जितना-जितना कायोत्सर्ग करने का विधान है, उस काल का अतिक्रमण किये बिना कायोत्सर्ग करना ही कायोत्सर्ग आवश्यक है। इसमें आसन, प्राणायाम और ध्यान-तीनों की साधना एक साथ होती है।
कायोत्सर्ग में साधक बिल्कुल स्थिर रहता है। उस समय देव, मानव और तिर्यंच संबंधी कोई भी उपसर्ग (विघ्न-बाधा) उपस्थित होने पर उसे समभावपूर्वक सहन करता है। 6. प्रत्याख्यान
षडावश्यक का छठा अंग प्रत्याख्यान है। प्रत्याख्यान का अर्थ है-त्याग करना। इच्छाओं के निरोध के लिए प्रत्याख्यान एक आवश्यक तत्त्व है। प्रमादपूर्वक किये गए भूतकालीन दोषों का