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7. वचन पुण्य-वचन की - शुभ प्रवृत्ति से होने वाला
शुभकर्म वचन पुण्य है। 8. काय पुण्य-शरीर की शुभ प्रवृत्ति से होने वाला
शुभकर्म काय पुण्य है। 9. नमस्कार पुण्य--पंच परमेष्ठी को किए जाने वाले
नमस्कार के निमित्त से होने वाला शुभकर्म नमस्कार पुण्य
5. पाप तत्त्व
पुण्य का प्रतिपक्षी तत्त्व पाप है। अशुभ रूप में बंधे हुए कर्म जब उदय में आते हैं तो उन्हें पाप कहा जाता है। कारण में कार्य का उपचार होने से जिन-जिन कारणों से अशुभ कर्म का बंधन होता. है, उन कारणों को भी पाप कह दिया जाता है। . . पाप के प्रकार
पाप के अठारह प्रकार हैं. 1. प्राणातिपात पाप-यह प्राण-वध मूलक अशुभ प्रवृत्ति से
बंधने वाला पापकर्म है। 2. मृषावाद-यह असत्य-वचन रूप अशुभ प्रवृत्ति से बंधने
वाला. पापकर्म है। 3. अदत्तादान-यह अदत्त वस्तु के ग्रहण रूप अशुभ प्रवृत्ति
से बंधने वाला पापकर्म है। 4. मैथुन-यह अब्रह्मचर्य के सेवन से बंधने वाला पापकर्म
___5. परिग्रह - यह वस्तु-संग्रह या ममत्व रूप अशुभ प्रवृत्ति से
. बंधने वाला पापकर्म है।