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6. स्थिरीकरण-सम्यक्दृष्टि वाला व्यक्ति धर्ममार्ग या न्यायमार्ग
से विचलित होने वाले व्यक्तियों को पुनः धर्ममार्ग और
न्यायमार्ग में स्थिर करता है। 7. वात्सल्य-सम्यक्दृष्टि वाला व्यक्ति अपने साधर्मिक बंधुओं
के प्रति वात्सल्यभाव रखता है। 8. प्रभावना-सम्यकदृष्टि व्यक्ति जिनशासन की महिमा बढ़ाता
है और उसकी प्रभावना में निमित्त बनता है। इन आठ में प्रथम चार अंग वैयक्तिक साधना के पोषक हैं और शेष चार संघीय व्यवस्था के पोषक हैं। 2. सम्यक् ज्ञान
भगवान महावीर की साधना पद्धति का केन्द्रीय शब्द है-उपयोग। उपयोग का अर्थ है-स्वयं में होना, वर्तमान में होना। जब हम उपयोग में होते हैं तब अस्तित्व अनावृत्त होता है। जीवन में जो भी मूल्यवान उपलब्धियां होती हैं, वे सब ज्ञानोपयोग में होती हैं। जड़ पदार्थों को हम बुद्धि से जान सकते हैं पर चेतना को नहीं जान सकते। महावीर ज्ञानोपयोगी थे। उन्होंने ज्ञान की पवित्रता से ही चरित्र की पवित्रता को स्वीकारा और कहा-पहले जानो, फिर करो। ज्ञान सम्पन्न जीव संसार में विनष्ट नहीं होता। जिस प्रकार धागे से पिरोई सुई गिरने पर भी गुम नहीं होती, उसी प्रकार ज्ञानयुक्त जीव संसार में विलुप्त नहीं होता। सम्यग ज्ञान 'मैं कौन हूँ?' इस जिज्ञासा से प्रारम्भ होता है और अस्तित्व में लय होने के साथ समाप्त होता
जो ज्ञान संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय से रहित, यथार्थ पदार्थ का ज्ञाता एवं स्व-पर प्रकाशक है, वही सम्यग ज्ञान है। ज्ञान के पांच प्रकार हैं