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सिद्धान्त में खोजा जा सकता है। अनेकान्त का तात्पर्य है वस्तु अनन्त धर्मात्मक (स्वभाव वाली) है। अतः उसके एक धर्म को जानकर उसे ही सम्पूर्ण सत्य मानने का आग्रह मत करो। वह सम्पूर्ण सत्य नहीं है, सत्यांश है। दूसरों के विचार और दृष्टिकोण में भी सत्य को खोजने का प्रयास करो। इससे आग्रह की समस्या को समाधान मिलता है। सत्य को जानने का अवसर प्राप्त होता है।
इस प्रकार जैन आचार की साधना जहां मोक्ष-प्राप्ति का साधन है, वहीं आज की समस्याओं का समाधान देने वाली भी है।
. 2. नौ तत्त्व 'तत्त्व' तत् शब्द से बना है। संस्कृत भाषा में तत् शब्द सर्वनाम है। सर्वनाम शब्द सामान्य अर्थ के वाचक होते हैं। तत् शब्द से भव अर्थ में 'त्व' प्रत्यय लगाकर 'तत्त्व' शब्द बना है, जिसका अर्थ होता है-उसका भाव अर्थात् 'तस्य भावः तत्त्वम्। वस्तु के भाव या स्वभाव को तत्त्व कहते हैं, जैसे-स्वर्ण का स्वर्णत्व, अग्नि का अग्नित्व, जीव का जीवत्व स्वभाव है। तत्त्व क्या है? . जैन दर्शन के अनुसार तत्त्वों पर यथार्थ श्रद्धा करना सम्यम् दर्शन है तथा तत्त्वों की सही-सही जानकारी होना सम्यक् ज्ञान है। तो सहज ही जिज्ञासा होती है कि तत्त्व क्या है? तत्त्व के लिए सत्, सत्व, अर्थ, पदार्थ, द्रव्य आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है। ये शब्द एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। तत्त्व शब्द का प्रयोग मुख्य रूप से दो अर्थों में हुआ है। तत्त्वार्थसूत्र में कहा गया है-'उत्पादव्ययधौव्ययुलं सत्, सत् द्रव्य लक्षणम्'। तत्त्व का पहला अर्थ है जो उत्पाद, व्यय, ध्रौव्ययुक्त होता है वह सत् कहलाता है तथा जो सत् है वही द्रव्य, तत्त्व है। तत्त्व का दूसरा अर्थ किया गया-'तत्त्वं पारमार्थिकं वस्तु' अर्थात् जो परमार्थ (मोक्ष) प्राप्ति में