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काल की दृष्टि से यह अनादि-अनन्त है। भाव की दृष्टि से यह अमूर्त है।
गुण की दृष्टि से-वर्तना गुण है। 5. पुद्गलास्तिकाय
विज्ञान में जिसे मैटर (matter) कहा गया है, जैन दर्शन में उसे पुद्गल की संज्ञा दी गई है। पुद्गल को परिभाषित करते हुए लिखा गया है-'पूरणगलनधर्मत्वात् इति पुद्गलः'। पुद्गल शब्द में दो पद हैं-पुद् और गल। पुद् का अर्थ है-मिलना और गल का अर्थ है-गलना, टूटना। जो द्रव्य प्रतिपल-प्रतिक्षण मिलता-गलता रहे, बनता-बिगड़ता रहे, टूटता-जुड़ता रहे, वही पुद्गल है। पुद्गल की दूसरी परिभाषा है-'स्पर्शरसगन्धवर्णवान् पुद्गलः' अर्थात् स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण से युक्त द्रव्य पुद्गल है। इस प्रकार पुद्गल एक ऐसा द्रव्य है, जो खण्डित भी होता है और पुनः परस्पर सम्बद्ध भी होता है। पुद्गल की सबसे बड़ी पहचान यह है कि उसे छुआ जा सकता है, चखा जा सकता है, सूंघा जा सकता है और देखा जा सकता है। स्पर्श, रस, गंध, वर्णयुक्त होने के कारण एकमात्र पुद्गल द्रव्य रूपी है, मूर्त है। संसार में जितनी भी वस्तुएँ दिखलाई देती हैं, वे सब पुद्गल हैं।
पुद्गल द्रव्य चार प्रकार का माना गया है-1. स्कन्ध, 2. देश, 3. प्रदेश, 4. परमाणु।
1. स्कन्ध-स्कन्ध एक इकाई है। दो से लेकर अनन्त परमाणुओं के समूह को स्कन्ध कहते हैं। दो परमाणुओं के मिलने से द्विप्रदेशी स्कन्ध बनता है। दस परमाणुओं के मिलने से दसप्रदेशी स्कन्ध बनता है। संख्येय परमाणुओं के मिलने से संख्येय प्रदेशी, असंख्येय परमाणुओं के मिलने से असंख्येय प्रदेशी तथा अनन्त परमाणुओं के मिलने से अनन्तप्रदेशी स्कन्ध बनते हैं। अनन्तानन्त