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होने के कारण संसारी आत्मा के साथ शरीर का संबंध असंभव नहीं
कुछ शंकाकार यह शंका करते हैं कि आत्मा अमूर्त तथा शरीर मूर्त है अतः अमूर्त का मूर्त में प्रवेश कैसे होगा? जैन दर्शन के अनुसार यह शंका निराधार है। संसारी अवस्था में आत्मा सूक्ष्म और स्थूल शरीर से युक्त रहती है। मृत्यु के समय स्थूल शरीर छूट जाता है पर सूक्ष्म शरीर नहीं छूटता। यही सूक्ष्म शरीर बार-बार जन्म धारण करता रहता है अतः सूक्ष्म शरीर से युक्त होने के कारण अमूर्त का मूर्त में प्रवेश कैसे होगा यह शंका ही निराधार है। आत्मा और शरीर का संबंध सेतु ___आत्मा और शरीर का मुख्य संबंध सेतु आश्रव है। आश्रव कर्मों के आने का द्वार है। जब तक यह द्वार खुला रहता है तब तक आत्मा और शरीर का संबंध बना रहता है। - कर्म बंधन का मूल कारण राग और द्वेष है, जैसा. कि कहा भी गया है
स्नेहाभ्यक्त शरीरस्य रेणुना श्लिष्यते यथा।
गात्रं रागद्वेषक्लिन्नस्य कर्मबन्धो भवत्येवं।। जिस प्रकार शरीर पर चिकनाई होती है तो रज कण उस पर चिपक जाते हैं और वह मैल रूप में परिणत हो जाता है। उसी प्रकार जीव में राग-द्वेष रूपी चिकनाई है और कर्मरज सर्वत्र फैली हुई हैं, अतः वे आत्मा के साथ चिपककर कर्म रूप में परिणत हो ‘जाती हैं। सिद्धों में राग-द्वेष नहीं है अतः उनके कर्मबंधन न होने के कारण शरीर का अभाव होता है।
, संसारी अवस्था में शरीर के बिना आत्मा की व्याख्या ही नहीं की जा सकती। अतः आत्मा और शरीर के संबंध का मुख्य सेतु कर्म और आश्रव है।