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__ 1. स्वस्मृति-स्वयं अपने आप अपने पूर्वजन्म की स्मृति हो जाने को स्वस्मृति कहते हैं। बहुत से ऐसे व्यक्ति होते हैं, जिन्हें अपनी बाल्यावस्था में अपने पूर्वजन्म का ज्ञान होता है। प्रो. स्टीवेंसन ने इस विषय पर अनुसंधान किया और पाया कि जिन बच्चों को अपने पूर्वजन्म की स्मृति थी, उन्होंने जो कुछ अपने पूर्वजन्म के विषय में बताया, अनुसंधान करने पर वह सच पाया गया। .
2. परव्याकरण-यह पूर्वजन्म की स्मृति का दूसरा हेतु है। 'पर' शब्द उत्कृष्टता और श्रेष्ठता का सूचक है। धर्म के क्षेत्र में आप्तपुरुष, तीर्थंकर श्रेष्ठ माने जाते हैं। तीर्थंकर अपने केवलज्ञान से सब कुछ जानते हैं। उनसे पूछकर व्यक्ति अपने पूर्वजन्म को जान सकता है। गौतम ने भगवान महावीर से पूछा-भगवन्! मुझे केवलज्ञान क्यों नहीं हो रहा है तो महावीर ने बताया-इसका कारण तुम्हारा मेरे प्रति अनुराग है। तुम्हारा और मेरा संबंध अनेक जन्मों का है। तुम मेरे चिरपरिचित हो। महावीर की वाणी को सुनकर गौतम को अपने पूर्वजन्म की स्मृति हो गई।
3. अन्य के पास श्रवण-दूसरों के पास सुनकर भी व्यक्ति अपने पूर्वजन्म की स्मृति कर सकता है। यहां दूसरों से तात्पर्य तीर्थकर के अतिरिक्त सभी ज्ञानी पुरुषों से है। वे अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी आदि कोई भी हो सकते हैं। विशिष्ट ज्ञानी के द्वारा निरूपित तथ्य को सुनकर किसी को अपने पूर्वजन्म की स्मृति हो जाती है। ___ इसके अतिरिक्त मोहनीय कर्म का उपशम, लेश्या (भावधारा) की विशुद्धि, अतीत के चिन्तन में होने वाली एकाग्रता भी पूर्वजन्म को जानने के कारण बनते हैं। विज्ञान के संदर्भ में पुनर्जन्म
विज्ञान में पदार्थ की ठोस, द्रव, गैस और प्लाज्मा-ये चार