________________
नये वस्त्र धारण कर लेता है, उसी प्रकार आत्मा भी पुराने शरीर को छोड़कर नवीन शरीर धारण कर लेता है। यही आत्मा का पुनर्जन्म कहलाता है। प्लेटो के शब्दों में-"The soul always wears her garments a new. The soul has a natural strength which will hold out and be born many times"... पुनर्जन्म का कारण
जैन दर्शन में पुनर्जन्म का मूल कारण कर्म को माना गया है। भगवान महावीर ने कहा-'रागो य दोषो बिय कम्मबीय, कम्मं च जाईमरणस्स मूलं' अर्थात् राग और द्वेष कर्म के बीज हैं तथा कर्म जन्म-मरण का मूल कारण है। कर्मयुक्त आत्मा के ही पुनर्जन्म हो सकता है। अकर्मा आत्मा जन्म-मरण की परम्परा से मुक्त होती है। दसवैकालिक सूत्र में बताया गया-अनिगृहीत क्रोध और मान तथा प्रवर्धमान माया और लोभ-ये चारों कषाय पुनर्जन्म रूपी वृक्ष के मूल का सिंचन करते हैं। आचारांग सूत्र में कहा गया-'माई पमाई पुणरेइ गभं' अर्थात् माया और प्रमाद बार-बार जन्म-मरण के कारण बनते हैं। पुनर्जन्म का एक महत्त्वपूर्ण कारण मूर्छा या आसक्ति को माना गया है। जिस प्रकार महामेघ से सिंचित होकर बीज अंकुरित हो जाता है, उसी प्रकार मूछ भाव का अत्यधिक सिंचन पाकर जीव बार-बार जन्म-मरण को प्राप्त होता है। इस प्रकार राग-द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रमाद आदि पुनर्जन्म के कारण बनते हैं।
___ जैन दर्शन में कहा गया-'कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि' अर्थात् कृत कर्मों का फल भोगे बिना मोक्ष प्राप्त नहीं होता। जब तक कर्मों का आगमन चालू है, तब तक कर्मफल भोगने के लिए बार-बार पुनर्जन्म होता रहता है। आचारांग सूत्र में उल्लेख मिलता है-'से असई उच्चागोए असई नीआगोए' अर्थात् प्रत्येक आत्मा