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___ 1. पहली मान्यता के अनुसार आत्मा है पर उसका पुनर्जन्म नहीं होता। ईसाई एवं इस्लाम धर्मानुयायी ऐसा मानते हैं।
2. दूसरी मान्यता के अनुसार आत्मा नहीं है पर पुनर्जन्म है। बौद्ध दर्शन अनात्मवादी होने के कारण आत्मा के त्रैकालिक अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते किन्तु चित्त-संतति के आधार पर पुनर्जन्म को स्वीकार करते हैं।
3. तीसरी मान्यता के अनुसार आत्मा एवं पुनर्जन्म दोनों नहीं हैं। ऐसी मान्यता चार्वाक दर्शन की है। वे आत्मा, परमात्मा, पुनर्जन्म आदि किसी भी अतीन्द्रिय पदार्थ की सत्ता को स्वीकार नहीं करते।
4. चौथी मान्यता के अनुसार आत्मा एवं पुनर्जन्म दोनों ही हैं। चार्वाक को छोड़कर प्रायः सभी आस्तिक दर्शन दोनों के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। आत्मा का जब तक कर्म के साथ संबंध है, तब तक जन्म और मृत्यु का प्रवाह चिरन्तन है। पुनर्जन्म का अर्थ
सभी भारतीय चिंतक इस बात से सहमत हैं कि अपने किये गए शुभ-अशुभ कर्मों का फल समस्त प्राणियों को भोगना ही पड़ता है। कुछ कर्म ऐसे होते हैं, जिनका फल इसी जन्म में मिल जाता है और कुछ कर्म ऐसे होते हैं, जिनका फल इसी जन्म में नहीं मिल पाता। जिन कर्मों का फल इस जन्म में नहीं मिलता, उनको भोगने के लिए कर्मयुक्त जीव पूर्ववर्ती स्थूल शरीर को छोड़कर नवीन शरीर धारण करता है। इस प्रकार पूर्व शरीर को छोड़कर नवीन शरीर धारण करना पुनर्जन्म कहलाता है। पुनर्जन्म को पर्याय बदलना, पुनर्भव, जन्मान्तर, प्रेत्यभाव, परलोक आदि भी कहते हैं।
पुनर्जन्म की प्रक्रिया में आत्मा का नाश नहीं होता, स्थूल शरीर का नाश होता है। जिस प्रकार मनुष्य फटे-पुराने कपड़े को छोड़कर