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इकाई-3
आचार-मीमांसा ... . आध्यात्मिक व्यक्ति का लक्ष्य होता है-आत्म-साक्षात्कार। जिसे प्राप्त करने की प्रक्रिया है-सम्यक् आचार। आचार की पवित्रता के बिना केवल ज्ञान लक्ष्य तक नहीं पहुंचा सकता। भगवान् महावीर की सारी आचार-व्यवस्था का आधार है-आत्मा। कर्म-बंधन के कारण आत्मा अनादिकाल से संसार में परिभ्रमण कर रही है। सम्यक् आचार के द्वारा आत्मा को कर्म-बंधन से मुक्त कर परमात्म-पद पर अवस्थित करना ही जैन आचार-मीमांसा का उद्देश्य है। जैन परम्परा में जो भी अनुष्ठान मोक्ष की ओर ले जाने वाला है, वह आचार है और शेष अनाचार।
सम्यक् आचार का पालन करने के लिए नौ तत्त्व और त्रिरत्न का ज्ञान होना आवश्यक है। रत्नत्रय के अभ्यास से आत्मा की क्रमिक विशुद्धि होती है, जिसे गुणस्थान कहा जाता है। आत्मा की विशुद्धि में षडावश्यक और दस धर्म का अभ्यास भी निमित्त बनता है। प्रस्तुत इकाई में जैन आचार का आधार और स्वरूप, नव तत्त्व, रत्नत्रय, गुणस्थान, षडावश्यक और दस धर्म का विवेचन किया गया
- 1. जैन आचार : आधार और स्वरूप
भारतीय दर्शन की चार प्रमुख शाखाएँ हैं-तत्त्वमीमांसा, ज्ञानमीमांसा, प्रमाणमीमांसा और आचारमीमांसा। इनमें से जैन दर्शन में आचार का स्थान सर्वोपरि है, क्योंकि आचार ही मोक्ष रूपी साध्य को प्राप्त करने का साक्षात् साधन है अतः जैन आचार मीमांसा को विस्तार से समझने से पूर्व आचार का स्वरूप और उसके आधार को समझना आवश्यक है। . .