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भारतीय व पाश्चात्य जगत् की भांति मनोविज्ञान में भी यह समस्या बनी हुई है कि आत्मा और शरीर का संबंध क्या है? कौन किसे प्रभावित करता है? बैन दर्शन में आत्मा और शरीर संबध
__ जैन दर्शन द्वैतवादी दर्शन है। विश्व व्यवस्था के संदर्भ में जड़ और चेतन दोनों की सत्ता को स्वीकार करता है। प्रश्न होता है कि जैन दर्शन के अनुसार आत्मा और शरीर दोनों निरपेक्ष दो स्वतंत्र सत्ताएँ हैं या इनमें परस्पर कोई संबंध भी है। यदि संबंध है तो संबध का कारण क्या है? आत्मा शरीर को प्रभावित करता है या शरीर आत्मा को प्रभावित करता है।
दूसरी बात जैन दर्शन के अनुसार आत्मा और शरीर दोनों सर्वथा विरोधी हैं तो इनका संबंध स्वतः होता है या इनका संबंध करवाने के लिए किसी तीसरे तत्त्व समवाय या ईश्वर की अपेक्षा होती है, जैसा कि अन्य दार्शनिक मानते हैं। - जैन दर्शन के अनुसार आत्मा और शरीर की सर्वथा निरपेक्ष सत्ता स्वीकार कर इनमें परस्पर संबंध तथा पारस्परिक प्रभाव की व्याख्या नहीं की जा सकती अपितु सापेक्ष स्वीकार करके ही संबंध तथा प्रभाव की व्याख्या की जा सकती है।
आत्मा और शरीर के संबंध में उठने वाली समस्त जिज्ञासाओं का समाधान देते हुए जैन दार्शनिकों ने कहा कि सर्वथा अमूर्त आत्मा के साथ शरीर का संबंध नहीं हो सकता अतः उन्होंने आत्मा को . दो भागों में बांट दिया
1. सिद्ध आत्मा, 2. संसारी आत्मा।
सिद्धात्मा सर्वथा अमूर्त होती है अतः उसका शरीर के साथ संबध नहीं होता किन्तु संसारी आत्मा संसारी अवस्था में कथंचित् मूर्त