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2. सिणेह (स्नेह)
सूत्र में आए हुए सिणेह - स्नेह शब्द का टीकाकार ने अर्थ किया है - ' स्नेह प्रतिबद्धारागादिरूपः स्नेहः ' परन्तु यह अर्थ संगत प्रतीत नहीं होता। जीव में राग होता है किन्तु पुद्गल में राग नहीं होता । अतः जीव और शरीर के संबंध का जो कारण बताया गया है, वह यह है कि जीव में घनात्मक शक्ति है और अजीव में ऋणात्मक शक्ति है। इन दोनों में संबंध स्थापित करने की योग्यता स्नेह है। 3. घडत्ताए (आधार)
घडत्ताए का एक अर्थ है- आधार । जीव और शरीर के संबंध में गौतम द्वारा पूछे गए प्रश्नों को समाहित करने के लिए भगवान ने एक सुन्दर उपमा को प्रस्तुत किया।
जैसे एक तालाब पानी से पूरा भरा हुआ है, उसमें जल समा नहीं रहा है। पानी के उस अथाह प्रवाह में एक व्यक्ति ने अपनी नौका को खड़ा किया। वह नौका सैकड़ों छिद्र वाली है। आश्रव और छिद्र पर्यायवाची हैं। छेदों में पानी प्रविष्ट होता है और धीरेधीरे पूरी नौका पानी से भर जाती है। इस दृष्टान्त को स्पष्ट करते हुए भगवान महावीर ने कहा- जीव में छिद्र है - आश्रव । पुद्गल की प्रकृति है छिद्र में भर जाना। कर्म पुद्गल सर्वत्र फैले हुए हैं तथा वे आश्रव द्वार से निरन्तर प्रविष्ट होते रहते हैं और आत्मा तथा शरीर के संबंध को बनाये रखते हैं।
संसारी अवस्था में आत्मा और शरीर दूध और पानी की तरह आपस में मिले हुए हैं। इन्हें अलग नहीं किया जा सकता। आत्मा और शरीर का संबंध कब हुआ
आत्मा और शरीर का संबंध कब हुआ, इस सन्दर्भ में सभी भारतीय दार्शनिकों ने चिंतन किया है।