________________
28
लौटते हैं, पर वे कभी किसी कक्षा के मध्य दिखाई नहीं देते। मध्यवर्ती आकाश से बिना गुजरे ही वे एक कक्षा से दूसरी कक्षा में छलांग लगाते हुए प्रतीत होते हैं। अस्पृशद् गति का तात्पर्य भी यही है कि मध्यवर्ती स्थान को छुए बिना ही स्वस्थान से लक्षित स्थान में पहुंच जाना।
जैन परमाणु और विज्ञान का परमाणु
जैन दर्शन के अनुसार परमाणु का विभाजन नहीं होता। विज्ञान भी अणु (Atom) को मानता है। विज्ञान के अनुसार अणु का विभाजन होता है। यह प्रोटोन और इलेक्ट्रोन में विभक्त होता है। इस प्रकार विज्ञान की मान्यता के अनुसार 'एटम' के टुकड़े किये जा सकते हैं और एटम से ही सभी पदार्थ बनते हैं। यही सभी पदार्थों का अंतिम कारण है।
जैन आगम अनुयोगद्वार में दो प्रकार के परमाणु का उल्लेख मिलता है
1. सूक्ष्म परमाणु,
2. व्यावहारिक परमाणु ।
सूक्ष्म परमाणु जैन दर्शन का मूल परमाणु है, जो कि अविभाज्य है। किन्तु व्यावहारिक परमाणु अनन्त सूक्ष्मतम परमाणुओं के समुदाय से बनता है। वह परमाणु पिण्ड है किन्तु वह भी इतना सूक्ष्म है कि उसे साधारण दृष्टि से देखा नहीं जा सकता और साधारण अस्त्र-शस्त्र से तोड़ा भी नहीं जा सकता इसलिए व्यवहारतः उसे परमाणु कहा गया है। विज्ञान जिसे परमाणु मानता है, उसकी तुलना जैन दर्शन के व्यावहारिक परमाणु से होती है। इसलिए परमाणु के टूटने की बात एक सीमा तक जैन दृष्टि को भी स्वीकार है। सूक्ष्म परमाणु निरवयव होने से उसे तोड़ा नहीं जा सकता । किन्तु व्यावहारिक परमाणु सावयव है अतः उसे तोड़ना संभव है। इस प्रकार