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का अस्तित्व अवश्य है। इस प्रकार स्वसंवेदन प्रत्यक्ष के द्वारा आत्मा का अस्तित्व सिद्ध होता है। 2. अनुमान प्रमाण .. अनुमान प्रमाण से भी आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व सिद्ध होता . है। चैतन्य लिंग की उपलब्धि से आत्मा का अनुमान होता है। आत्मा
गुणी (द्रव्य) है। चैतन्य उसका गुण है। चैतन्य गुण हमारे प्रत्यक्ष है किन्तु आत्मा जो गुणी है, वह परोक्ष है। परोक्ष गुणी की सत्ता प्रत्यक्ष गुण से प्रमाणित हो जाती है। जैसे-कमरे में बैठा हुआ आदमी सूर्य को नहीं देखता, फिर भी वह प्रकाश और धूप के द्वारा अदृष्ट सूर्य को जान लेता है। उसी प्रकार अदृष्ट आत्मा चैतन्य लिंग के द्वारा जान ली जाती है। 3. आगम प्रमाण
. आगम में भी आत्मा को सिद्ध करने वाले अनेक सूत्र . मिलते हैं। दसवैकालिक सूत्र में कहा गया-'सव्वे जीवावि इच्छंति जीविठं न मरिज्जिठं' अर्थात् सब जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता। 'अत्तसमे मन्नेज छप्पि काए' अर्थात् पृथ्वी, अप, तैजस आदि छः काय के जीवों को अपनी आत्मा के समान मानो।
तर्कशास्त्र का नियम है कि सत् सप्रतिपक्ष होता है। 'यत्सत् तत्सप्रतिपक्षम्'-जो सत् है, वह सप्रतिपक्ष है। जिसके प्रतिपक्ष का अस्तित्व नहीं होता, उसके अस्तित्व को तार्किक समर्थन भी नहीं मिल सकता। यदि चेतन नामक सत्ता नहीं होती तो अचेतन सत्ता का नामकरण और बोध भी नहीं होता। इस प्रकार प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से आत्मा का अस्तित्व सिद्ध किया गया है। इसके अतिरिक्त आत्मा के त्रैकालिक अस्तित्व को सिद्ध करने वाले और भी अनेक हेतु उपलब्ध होते हैं