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किये तब-तब प्रतिवादस्वरूप आत्मवादियों ने भी हेतु प्रस्तुत किये और प्रमाण के द्वारा उसका त्रैकालिक अस्तित्व सिद्ध किया। प्रमाण द्वारा आत्मा की सिद्धि . आत्मवादी दार्शनिक आत्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व स्वीकार करते हैं तथा प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से उसे सिद्ध भी करते हैं। 1. प्रत्यक्ष प्रमाण
भारतीय दर्शन में प्रत्यक्ष चार प्रकार का माना गया है1. इन्द्रिय प्रत्यक्ष, 2. मानस प्रत्यक्ष, . 3. योगज प्रत्यक्ष, 4. स्वसंवेदन प्रत्यक्षा
प्रथम दो प्रत्यक्ष आत्मा के अस्तित्व को सिद्ध करने में समर्थ नहीं हैं। योगज प्रत्यक्ष अर्थात् योग साधना से होने वाला प्रत्यक्ष भी हमसे परोक्ष होने के कारण हमारी बुद्धि का विषय नहीं है। चतुर्थ स्वसंवेदन प्रत्यक्ष के द्वारा आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि होती है। मैं सुखी हूँ, मैं दु:खी हूँ-इस प्रकार का ज्ञान आत्मा के होने पर ही हो सकता है, अन्यथा नहीं।
इन्द्रिय प्रत्यक्ष से आत्मा का ज्ञान न होने मात्र से आत्मा के अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता। इन्द्रिय से तो हम दो-तीन पीढ़ी पूर्व के पूर्वजों को भी नहीं जानते पर इतने मात्र से उनका अभाव नहीं हो जाता। हमारे न जानने पर भी पूर्वजों का अस्तित्व होता है। आत्मा अमूर्त है अतः वह इन्द्रिय-ग्राह्य नहीं है। भगवान् महावीर ने कहा-'नो इन्दियगेज्झ अमुत्तभावा'-अमूर्त पदार्थ इन्द्रिय-ग्राह्य नहीं है। जिस प्रकार मूर्त पदार्थों में भी जो सूक्ष्म, दूरवर्ती एवं व्यवहित हैं उन्हें भी हमारी इन्द्रियां नहीं जानती पर फिर भी उनका अस्तित्व होता है। उसी प्रकार इन्द्रिय-ग्राह्य न होने पर भी आत्मा