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संकोच और विस्तार की शक्ति पाई जाती है। जिस प्रकार एक दीपक को रोशनदान से रहित चारों ओर से बंद कमरे में रख दिया जाये तो वह केवल उस कमरे को प्रकाशित करता है और उस दीपक पर यदि एक बर्तन रख दिया जाये तो उसका प्रकाश उसमें सिमट जाता है और यदि कमरे के दरवाजे और खिड़कियां खोल दी जायें तो उसका प्रकाश कमरे से बाहर भी फैल जाता है। उसी प्रकार आत्मा छोटे-बड़े शरीर के आधार पर अपना संकोच और विस्तार कर लेती है।
आत्मा अपने कर्म के अनुसार जब हाथी के शरीर को छोड़कर चींटी के शरीर में प्रवेश करती है तो अपने आत्म- प्रदेशों को संकुचित कर लेती है और जब चींटी का शरीर मरकर हाथी के शरीर में प्रवेश पाता है तो जल में तेल की बूंद की तरह फैलकर वह हाथी के शरीर में व्याप्त हो जाती है।
यदि शरीर के अनुसार आत्मा संकोच - विस्तार न करे तो फिर बचपन की आत्मा दूसरी तथा युवावस्था की आत्मा दूसरी माननी पड़ेगी, जिससे बचपन की स्मृति युवावस्था में नहीं हो सकेगी अतः मानना होगा कि आत्मा शरीर परिमाण है।
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4. अनुमान से शरीर परिमाण की सिद्धि
अनुमान प्रमाण से भी आत्मा को शरीर परिमाण सिद्ध किया गया है-आत्मा व्यापको न भवति चेतनत्वात् यत्तु व्यापकं न तत् चेतनम् यथा व्योमः चेतनश्चात्मा तस्माद् न व्यापकः । अव्यापकत्वे चास्य तत्रैवोपलभ्यमानगुणत्वेन सिद्धं काय प्रमाणता ।
आत्मा व्यापक नहीं होती, क्योंकि वह चेतन है। जो व्यापक होता है, वह चेतन नहीं होता, जैसे- आकाश । आत्मा चेतन है अतः वह व्यापक नहीं है। आत्मा के गुण शरीर में ही उपलब्ध होने पर वह शरीर परिमाण है, यह सिद्ध होता है।