________________
30
के साथ सम्बन्ध होता है किन्तु समान गुण वाले या एक गुण अधिक परमाणु के साथ सम्बन्ध नहीं होता ।
इस प्रकार जैन दर्शन में परमाणु का सूक्ष्म विवेचन किया गया है। विज्ञान जिसे परमाणु मानता है, जैन दर्शन के अनुसार वह अनन्त परमाणुओं का समूह होने के कारण उसे वास्तविक परमाणु नहीं, अपितु व्यावहारिक परमाणु कहा जा सकता है।
5. लोकवाद
विश्व, जगत्, सृष्टि अथवा संसार के लिए जैन परम्परा में सामान्य रूप से लोक शब्द का व्यवहार हुआ है। यह विराट् विश्व जो हमें दृष्टिगोचर हो रहा है, वह क्या है? इसका प्रारम्भ कब हुआ ? इसका अन्त कब होगा? इसका आकार कैसा है? आदि अनेक प्रश्न मानव मस्तिष्क में उभरते रहते हैं। इन प्रश्नों का समाधान विभिन्न विचारकों ने विभिन्न प्रकार से किया है। आधुनिक विज्ञान भी इन तथ्यों की खोज में अनवरत प्रयत्नशील है।
-
लोक क्या है?
लोक शब्द पारिभाषिक शब्द है, जो व्यवहार में प्रचलित विश्व (Cosmos अथवा Universe) का वाच्य है। यह लोक क्या है ? इसका उत्तर दो रूपों में मिलता है। कहीं पर पंचास्तिकाय को लोक कहा गया है तो कहीं पर षड्द्रव्य को लोक माना गया है। भगवतीसूत्र में बताया गया है- लोक पंचास्तिकायरूप - धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और जीवास्तिकाय रूप है। अन्य ग्रन्थों में षड्द्रव्यात्मको लोकः कहकर इन पांच अस्तिकायों के साथ छठा काल को मानकर लोक को षड्द्रव्यात्मक कहा गया है।
1. धर्मास्तिकाय - जीव और पुद्गल की गति में उदासीन भाव से सहायक द्रव्य ।