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2. विभाव पर्याय
जिस परिवर्तन में किसी दूसरे पदार्थ की अपेक्षा रहती है। दूसरों के निमित्त से होने वाला परिवर्तन विभाव पर्याय है, जैसेदूध में दही का जामन देने पर वह दूध-दहीं के रूप में परिवर्तित. हो जाता है। जामन द्वारा दही के रूप में परिवर्तित होना विभाव पर्याय
है।
पर्याय द्रव्य और गुण दोनों के आश्रित रहता है। इस दृष्टि से द्रव्य और गुण में स्थूल या सूक्ष्म जितना भी बदलाव आता है, वह सब पर्याय है।
द्रव्य-गुण- पर्याय का भेदाभेद
जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य-गुण- पर्याय में न एकान्ततः भेद है और न ही एकान्ततः अभेद हैं अपितु भेदाभेद है। भेदाभेद अर्थात् किसी अपेक्षा से भेद है और किसी अपेक्षा से अभेद भी है।
मुक्ताभ्यः श्वेततादिभ्यो मुक्तादाम यथा पृथक् । गुणपर्याययोर्व्यक्तेर्द्रव्यशक्तिस्तथाश्रिता । ।
द्रव्यानुयोग तर्कणा की उपर्युक्त गाथा में द्रव्य-गुण- पर्याय–इन तीनों के भेदाभेद का प्रतिपादन स्पष्ट रूप से हो जाता है। जैसे एक मुक्ताहार का विश्लेषण हार, धागा और मोती- इन तीन रूपों में किया जाता है, वैसे ही एक द्रव्य का विश्लेषण द्रव्य, गुण और पर्याय के रूप में किया जाता है। जैसे स्वर्ण से उसका गुण पीलापन और कुण्डल आदि पर्याय उससे भिन्न नहीं हैं, वैसे ही द्रव्य से भिन्न गुण और पर्याय नहीं हैं। इसीलिए जो गुण और पर्याययुक्त है, वह द्रव्य है, ऐसा द्रव्य का लक्षण किया जाता है।
द्रव्य-गुण- पर्याय में परस्पर अभेद
द्रव्य-गुण- पर्याय में परस्पर आधार-आधेय भाव संबंध है। द्रव्य