Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 28
________________ वहुमूल्य वस्तुएं ३३७, देवी पूजा ३३८, विजय के उपलक्ष्य में देवीपूजा महोत्सव ३३६, जैन मन्दिर एवं तीर्थ स्थान ३३६, जैन मन्दिरों को धार्मिक लोकप्रियता ३४०, जैन मन्दिरों का स्थापत्य ३४१ वस्तुपाल तथा कुमारपाल की तीर्थयात्राएं ३४२ वस्तुपाल द्वारा धार्मिक स्थानों का जीर्णोद्धार तथा मन्दिर निर्माण ३४४, राजा कुमारपाल द्वारा मन्दिर निर्माण ३४७, जैन धार्मिक पर्व एवं महोत्सव ३४८ जैन देवशास्त्र तथा पौराणिक विश्वास ३५०, जैन देवों का वर्गीकरण ३५०, जैन देवों का स्वरूप ३५२, जैन देवियों का स्वरूप ३५४, काल विभाजन एवं युगचक्र ३५६, अवसर्पिणीकाल ३५६, उत्सर्पिणी काल ३५७, चौदह कुलकर अथवा सोलह मनु ३५७, त्रिषष्टिशलाकापुरुष ३५८, जैन मुनि धर्म ३५६, भोग से विरक्ति की ओर ३५, मुनिधर्म : सामाजिक प्रासङ्गिकता ३६०, समाज में मुनिभाव के प्रति आस्था ३६०, मुनिचर्या का स्वरूप ३६२, सांसारिक विरक्ति के कारण ३६२, मुनि प्रचार ३६२, तपश्चर्या ३६३, तपों के भेद ३६३, विविध प्रकार के कठोर तप ३६४, मुनि विहार ३६५, साध्वियों की तपश्चर्या ३६६, ब्राह्मण धर्म की युगीन प्रवृत्तियाँ ३६७, यज्ञानुष्ठान ३६७, बलिप्रथा ३६८, देवोपासना ३७०, शैव सम्प्रदाय ३७१, वैष्णव सम्प्रदाय ३७२, सूर्योपासना ३७२, प्रसिद्ध तीर्थ स्थान ३७३ । २. दार्शनिक मान्यताएं xxvi ३७५-४०६ महाकाव्य युग का जैन दर्शन: प्रवृतियां और प्रयोग ३७५, जटासिंह नन्दि की अनेकान्त अवधारण ३७६, अनेकान्तवाद पर विरोधी प्रहार ३७८, आस्तिक और नास्तिक दर्शनों का नवीन ध्रुवीकरण ३७६, जैन दर्शन ३८१, प्रमाण व्यवस्था ३८१, नयव्यवस्था ३८२, द्रव्य व्यवस्था ३८२, तत्त्व व्यवस्था ३८३, जैन दर्शन के सात तत्त्व ३५३, जीव ३८४, अजीव ३८६, पुद्गल षड्विध ३८७, श्राश्रव ३८६, बन्ध ३६०, संवर ३६०, निर्जरा ३६१, मोक्ष ३६१, जैनेतर दार्शनिकवाद ३६२, सृष्टि विषयक प्राचीनवाद ३६३, कालवाद ३१३, नियतिवाद ३६३, स्वभाववाद ३६४, यदृच्छावाद ३६४, सांख्याभिमत सत्कार्य - वाद ३६५, मीमांसाभिमत सर्वज्ञवाद ३६६, बौद्धाभिमत विविधवाद ३६७, शून्यवाद ३६७, क्षणिकवाद ३६७, नैरात्म्यवाद ३६८, पौराणिक देववाद ३६८, चार्वाकाभिमत भूतवाद ३६६, अन्य लोकायतिकवाद ४०१, मायावाद ४०१, तत्त्वोपप्लववाद ४०२, निष्कर्ष ४०३ । १. शिक्षा सप्तम अध्याय शिक्षा, कला एवं ज्ञान-विज्ञान मध्यकालीन भारत में शैक्षिक वातावरण ४०७, ४०७-४५७ ४०७२४३७ शिक्षा की तीन धाराएं ४०८,

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