Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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आशीर्वचन एवं शुभकामनाएं
विरोधाभासी गुरु को शत शत बन्दन डॉ. सुदर्शन लाल जैन रीडर, हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी
(१) नाम में विरोधाभास-'जगन्मोहन' शब्द के चार अर्थ संभव हैं-(१) जो जगत् को मोहित करे ( जगत् स्वाकर्षकगुणादिभिः शरीरादिभिर्वा मोहयतीति जगन्मोहनः )। (२) संसार में कामदेव के समान मोहन स्वभावी ( जगति मोहनवत् कामवत् मोहनः जगन्मोहनः )। (३) जिसे जगत् से मोह नहीं है, ऐसा वीतरागी ( जगति मोहो नास्ति यस्य सः जगन्मोहनः )। (४) जगत् के प्राणियों के लिए शिवस्वरूप कल्याणकारी ( जगते मोहनः शिवः कल्याणकरः एतन्नामको देवो वा जगन्मोहनः )। इन चार शब्द-व्युत्पत्तियों में से प्रथम दो उनके सरागीपन को सूचित करती हैं जबकि अंतिम दो उनके वीतरागभाव को प्रकाशित करती हैं। वस्तुत: अपेक्षा भेद ( नय भेद ) से वे बाहर से सरागी ( गृहस्थ ) और अन्दर से वीतरागी ( साधक ) हैं । हिन्दू पुराणों में एक कथा आती है। जब समुद्र-मन्थन से अमृत निकला, तो उसे पाने के लिए देव और राक्षस दोनों में छीना-झपटी होने लगी। तब भगवान् विष्णु ने राक्षसों को ठगने के लिए 'मोहनी' का रूप धारण करके अमृत को राक्षसों से बचाकर देवों को दिया था। इसी तरह पं० जगन्मोहन ने राक्षसरूपी कर्मशत्रुओं को ठगने के लिए अपना जगन्मोहन रूप बनाकर उन्हें ठगा और अपनी देव-तुल्य ज्ञान चेतना को जागृत किया।
(२) कार्य क्षेत्र में विरोधाभास-जिस प्रकार नाम में विरोधाभास दिखता है, उसी प्रकार कार्य क्षेत्र में भी विरोधाभास दिखता है । जैसे--प्रकाश नहीं परन्तु समाज के प्रकाशस्तम्भ हैं, त्रिशलानन्दन (भगवान् महावीर) नहीं, परन्तु त्रिशलानन्दन-पथानुगामी हैं, मृग नहीं, परन्तु कस्तूरी (प्रथम पत्नी का नाम, जिनसे सन् १९२२ में विवाह था) को धारण करते हैं, फूल नहीं परन्तु फूलमती (द्वितीय पत्नी का नाम जिनसे सन् १९३४ में विवाह हुआ था) से समलंकृत हैं, मोहन ( कामदेव या कामदेव का वाण ) नहीं, परन्तु जगन्मोहन हैं, गोकुल नहीं परन्तु गोकुलप्रसाद रत्न ( पं० जी के पिता का नाम ) हैं, अमर ( देव ) नहीं, परन्तु अमरचन्द्र ( पं० जी के पुत्र ) के जनक हैं, देव नहीं परन्तु देवद्वय ( पं० जी के दो पुत्र ) से पूजित हैं, भगवान् ऋषभ नहीं परन्तु ऋषभ-क्षमा (पं० जी की पुत्रवधू, भ० ऋषभ द्वारा प्रतिपादित क्षमा गुण के धारक ) से विभूषित हैं, राजनेता नहीं परन्तु राजनीति निष्णात हैं, पलट स्वभावी नहीं; परन्तु पलटूराम जी (पं० जी के हितैषी ) के भक्त हैं, भ० गौतम बुद्ध नहीं परन्तु सिद्धार्थ (पं० जी का पुत्र ) के पिता हैं, रत्नाकर ( समुद्र ) नहीं परन्तु गुणरत्नों के आकर हैं, आकाश नहीं परन्तु शशिद्वय ( इन्दु और शशि ये दो कन्यायें हैं, शशि पुत्रवधू भी है ) से वेष्टित हैं, ब्रह्मचारी ( ब्रह्मचर्य प्रतिमाधारी ) हैं परन्तु मुक्तिरमा के चिरालिङ्गन के अभिलाषी हैं, कर्मठ ( भ० पार्श्वनाथ पर उपसर्ग करने वाला ) नहीं, परन्तु कर्मठ हैं, त्यागी नहीं परन्तु रागद्वेष के त्यागी हैं ( त्याग पर पदार्थ का होता है, स्व का नहीं। अतः कोई भी त्यागी नहीं है। परन्तु व्यवहार नय से रागद्वेष के त्यागी हैं।)
(३) विविध गुणों के आकर-जैसे दीपावली में नगर विविध दीपमालाओं से सुशोभित होता है, वैसे ही उनके चैतन्य नगर में अनेक गुणमालाओं का सदा निवास है। इन्हीं गुणों के कारण आप गाढ़ान्धकार में दीपक हैं, विपत्ति में बन्धु हैं, दुःख रूपी समुद्र में नौका हैं, और समस्याओं के सुलझाने में मन्त्रशक्ति सम्पन्न हैं । इनके अतिरिक्त, स्याद्वाद की साक्षात् प्रतिमूर्ति, समाज सुधारक, अन्तर्जातीय विवाह समर्थक, एकता के अभिलाषी,
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