Book Title: He Prabho Terapanth
Author(s): Sohanraj Kothari
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 32
________________ तेरापंथ का उदयकाल १९ १०. पीपाड़ ११. आमेट १२. पादू १३. नाथद्वारा १४. पुर १५. सोजत son on me , १८३४, ४५ १८३५ १८३७ ॥ १८४३, ५०, ५६ , १८४७, ५७ , १८५३ आचार्य भिक्षु का विहार मारवाड़, मेवाड़, हाड़ौती, ढूंढाड़ व थली इन पांच प्रदेशों में हुआ पर मुख्य विहार क्षेत्र मेवाड़, मारवाड़ ही रहे। मेवाड़ के पांच विभिन्न क्षेत्रों में १३ चातुर्मास, मारवाड़ के नव विभिन्न क्षेत्रों में २६ चातुर्मास, हाड़ोती में सवाई माधोपुर में दो चातुर्मास हुए, ढूंढाड़ में चातुर्मास नहीं हुआ पर स्वामीजी संवत् १८४८ के शेषकाल में जयपुर पधारे व कालों की हाटों में २२ दिन विराजे व लाला हरचन्दलालजी जौहरी आदि को समझाया । थली प्रदेश में भी स्वामीजी का चातुर्मास नहीं हुआ पर संवत् १८३७ में पादू चातुर्मास संपन्न कर बोरावड लाडनूं होते हुए वे बीदासर, राजलदेसर, रतनगढ़ स्पर्श करते हुए चूरू तक पधारे। क्षेत्र-स्पर्शना से अधिक तेरापंथ के बहिर्भत व बहिष्कृत साधु चन्द्रभानजी, तिलोकजी आदि के भ्रांत प्रचार का निरसन करने के ध्येय से ही वे चूरू तक पधारे, पर लगता है कि जयपुर या थली प्रदेश के प्रति उनका लक्ष्य नहीं बन पाया। यह भी एक विचित्र बात है कि जिस राजनगर में स्वामीजी को बोधि प्राप्त हुई वहाँ उन्होंने प्रारम्भ में संवत् १८२० में मात्र एक चातुर्मास नहीं किया और बाद में उन्होंने या उनके उत्तरवर्ती किसी आचार्य ने वहां चातुर्मास नहीं किया। ठीक १६७ वर्ष बाद संवत् २०१७ में तेरापंथ द्विशताब्दी समारोह का प्रसंग आने पर आचार्यश्री तुलसी ने इस क्षेत्र का पुनरुद्धार कर राजनगर को चातुर्मास का वरदान दिया। इसी तरह आचार्य भिक्षु ने कंटालिया में प्रारम्भ में संवत् १८२४ व १८२८ के चातुर्मास किये व बगड़ी में १८२७, ३० व ३६ के चातुर्मास किये पर उत्तरवर्ती वर्षों में इन क्षेत्रों को चातुर्मास से वंचित रखा, जबकि ये दोनों क्षेत्र स्वामीजी के गृहस्थ जीवन से अत्यधिक संबंध रखने वाले थे। पाली, सिरीयारी और छोटा-सा गांव खैरवा स्वामीजी के प्रारम्भ से अन्त तक आकर्षणक्षेत्र रहे। यह एक गवेषणा का विषय है कि ऐसा क्यों हुआ। संभवतः उन क्षेत्रों के लोग इस स्थिति पर अधिक प्रकाश डाल सकें। स्वामीजी के अनन्य श्रावक गेरूलालजी व्यास ने कच्छ में तेरापंथ की मान्यताओं से वहां के प्रमुख श्रावक टीकम डोसी को परिचय कराया। टीकम डोसी ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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