Book Title: He Prabho Terapanth
Author(s): Sohanraj Kothari
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh
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१७० हे प्रभो ! तेरापंथ
"चेला चेली करण रा लोमिया रे, एकंत मत बांधण सुं काम रे, विकलों ने मड मड भेला करे रे, दिरावे गहस्थ ने रोकड़ दाम रे।" "विवेक विकलने सांग पहरावे, भेलो करे आहार जी, सामग्री में जाय बंदावे, फिर फिर करे खंवारजी।" "अजोग ने दीख्यादीधी ते, भगवते आज्ञा बार जी, नसीत रोवे दंड मूल न मान्यो ते विरल हवा बेकारजी।"
बिण अंकुश जिम हाथी चाले, घोड़ो बिगर लगाम जी, एहवी चाल कुगुरु जाणो, कहिवा ने साधनाम जी।" "समण थोडा ने मूंड घणा, पांचवे अरिचैन, भेष लेई साधो तणी
- करसी कूडाफेन ।" "वेराग्य घट्यो ने भेष बधियो, हाथ्यो रो भार गधा लदियो, थक गया, बोझ, दियो रालो, एहवा भेषधारी पंचम कालो॥" "खेत खाद्यो लोकों तणो, पहर नाहर री खाल, ज्यू भेष लियो साधो तणो, पिण चले गधे री चाल ।" "दबकरे उतावला चाले, त्रस थावर मार् या जायजी। ईया समिति जोयां बिना, ते किम साधु थायजी।" "हृष्ट पुष्ट ने मांस बधारे, बले करे विगे रा पूरजी, माठा परिणामां नारी निरखे, ते साधुपणा थी दूरजी।" "अचित वस्तु ने मोल लिरावे, तो सुमत गुप्त हुवे खंडजी, महाव्रत पांचोई भागा, चौमासी नो दंडजी।" "पुस्तक, पात्र, उपाक्षयादिक, लिवरावे, ले ले नामजी, आछा मुंडा कही मोल बतावे, ते करे गहस्थ रा कामजी ।" "आधाकर्मी थानक में रहे, तो पाडे चारित में भेदजी, नशीत में दशमें उद्देशे, च्यार महीनों रो छेदजी।" "गृहस्थी साथे कहे संदेशो भेलो हवे संभोगजी, तिण ने साधु किमसरधीजे, लागे जोग ने रोगजी।" "पर निन्दा में राता माता, चित्त में नहीं, संतोषजी, वीर कह्यो दसमे अंगमां, तिण वचन में तेरे दोषजी।" "आवण जावण, वेसण, उठणरी, बले जायगा देवे बतायजी, इत्यादिक साधु कहे, गृहस्थ ने, तो दोनूं बराबर थायजी।" "साधुओं ने डुबोया श्रावके, श्रावकों ने डुबोया साध,
दोन डुबा बापड़ा जिनवर वचन विराध ।" .आदि आदि।
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