Book Title: He Prabho Terapanth
Author(s): Sohanraj Kothari
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 189
________________ १७६ हे प्रभो ! तेरापंथ प्रतिदिन बोलने, हस्ताक्षर करने व पक्ष में एक बार जनता __ के समक्ष बोला जाने वाला लेख पत्र (अ) प्राचीन लेख-पत्र ___ मत्थेण वंदामि हाथ जोड़ आप सूं अरज करूं महाराजाधिराज श्री भिक्षु भारीमाल ऋषिराय जय जश मघवा, माणक डालचन्द, कालूराम, तुलसीराम, गणिराजजी बांधी मर्यादा सर्व कबूल छै । खोली में श्वांस रेह जठा ताई लोपण रा त्याग छै। आप महादयाल छो, गोवाल छो, परमपूज्य भगवान छो। सूत्र में आचार्य ना छत्तीस गुण कह्या त्यां गुणा कर सहित छो। ५ महावत ना पालणहार, ४ कषाय ना टालनहार, ५ आचार ना पालणहार, ५ समिति ३ गुप्ति ५ इन्द्रियां जीतनहार ६ बाड़ सहित ब्रह्मचर्य ना पालणहार एहवतरण तारण उत्तम पुरुष आपने जांणू छु। आप री आज्ञा में चाले साधु-साध्वी त्यांने १४ हजार ३६ हजार आगे वीर थको हुतां त्यां सरीखा सरधु छु। चोखो साधुपणो सरधु छु । म्हाने पिण चोखो सरधु डूं। आपरी आज्ञा लोयी टालीकड़ हुवे तिण ने अढाई द्वीप रा चोर विचे मोटो चोर समझू छु। आपरा अवर्ण वाद बोलण हारा ने मोटो पापीष्ठ महा-मोहनीय कर्म बांधण हारो, भृष्ट भागल, अन्यायी, अनन्ता जन्म-. मरण नो बंधाण हारो, नरक निगोद नो जाण हारो, तिणरी बात माने तिण ने चोर, झूठा बोलो जाणू छु । इसो काम करण रा म्यारे तो जाव जीव रा त्याग छ । औरो ने साथे ले जावण रा त्याग छै । पोथी पाना साथ ले जावण रा त्याग छै। टालोकड़ भेलो आहार पाणौ करण रा त्याग छ । सरधारा क्षेत्र में एक रात्रि उपरान्त रहिवा रा त्याग छ । टोला मांहिने बारे अंश मात्र अवर्णवाद बोलण रा त्याग छ । अनन्त सिद्धां री आंण छै। पांच पदा री साख सू जाव जीव पच्चखाण छ। मैं घणे तीखे मन हर्ष राजीपा सूं लिख्यो । शर्माशर्मी तूं लिख्यो नहीं। लिखतु ऋष संवत् (उपरोक्त लेखपत्र को संवत् २००७ भिवानी मर्यादा महोत्सव के अवसर पर संशोधित किया गया तथा प्रतिदिन प्रातःकाल सामूहिक उच्चारण करना अनिवार्य किया गया।) (ब) नवीन लेख-पत्र मैं सविनय बद्धांजलि प्रार्थना करता हूं कि श्री भिक्षु भारीमाल आदि पूर्वज आचार्य तथा वर्तमान आचार्यश्री तुलसी-गणि द्वारा रचित सर्व मर्यादाएं मुझे मान्य हैं। आजीवन उन्हें लोपने का त्याग है। गुरुदेव ! आप संघ के प्राण हैं । श्रमण परम्परा के अधिनेता हैं। आप पर मुझे पूर्ण श्रद्धा है। आपकी आज्ञा में चलने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206