Book Title: He Prabho Terapanth
Author(s): Sohanraj Kothari
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 190
________________ परिशिष्ट १७७ वाले साधु-साध्वियों को भगवान् महावीर के साधु-साध्वियों के समान शुद्ध साधु मानता हूं। अपने-आपको भी शुद्ध साधु मानता हूं। मैं आपकी आज्ञा लोपने वालों को संयम मार्ग से प्रतिकूल मानता हूं। • मैं आपकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करूंगा। • प्रत्येक कार्य आपके आदेश पूर्वक करूंगा। .शिष्य नहीं करूंगा, दलबंदी नहीं करूंगा। • आपके कार्य में हस्तक्षेप नहीं करूंगा। • आपके तथा साधु-साध्वियों के अंश मात्र भी अवर्णवाद नहीं बोलूंगा। ● किसी साधु-साध्वी में दोष जान पड़े तो, स्वयं उसे आचार्य को जताऊंगा। • सिद्धान्त मर्यादा या परम्परा के किसी भी विवादास्पद विषय में आप द्वारा __किए गए निर्णय को श्रद्धापूर्वक स्वीकार करूंगा। • गण से बहिष्कृत या बहिर्भूत व्यक्ति से संस्तव नहीं रखूगा। गण के पुस्तक पत्रों आदि पर अपना अधिकार नहीं रखूगा। पद के लिए उम्मीदवार नहीं बनूंगा। • आपके उत्तराधिकारी की आज्ञा सहर्ष शिरोधार्य करूंगा। पंच पदों की साक्षी से मैं इन सबों के उल्लंघन का प्रत्याख्यान करता हूं। मैंने यह लेख-पत्र आल्म-श्रद्धा व विवेकपूर्वक स्वीकार किया है। संकोच आवेश या प्रमादवश नहीं, स्वीकृत मुनि । संवत गण विशुद्धिकरण हाजरी प्रतिदिन स्वयं व प्रति सप्ताह या पक्ष में श्रावक श्राविकाओं की परिषद् में दुहराए जाने वाले संकल्पों का विधान पत्र जो श्रीमद् जयाचार्य ने संरचित किया तथा जिसे आचार्यश्री तुलसी ने सं २००७ में हिन्दी भाषा में शोधित किया। ___सर्व साधु-सध्वियां पांच महाव्रत, पांच समिति और तीन गुप्ति की अखण्ड आराधना करें। ईर्या, भाषा, एषणा में विशेष सावधान रहें। चलते समय बात न करें। सावध भाषा न बोलें । आहारपानी पूरी जांच करके लें । शुद्ध आहार भी दाता का अभिप्राय देखकर हठ-मनुहार से लें। वस्त्र-पात्र आदि लेते और रखते समय तथा 'पूंजने' व 'परठने' में पूर्ण सावधानी बरतें। प्रतिलेखन और प्रतिक्रमण करते हुए बात न करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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