Book Title: He Prabho Terapanth
Author(s): Sohanraj Kothari
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 195
________________ १८२ हे प्रभो ! तेरापंथ (इस वाचना के बाद प्रत्येक साधु-साध्वी भरी परिषद् में लेख पत्र बोलते लेख पत्र ___ मैं सविनय श्रद्धांजलि प्रार्थना करता हूं कि श्री भिक्षु भारीमाल आदि पूर्वज आचार्य व वर्तमान आचार्यश्री तुलसी गणि द्वारा विरचित सर्व मर्यादाएं मुझे मान्य हैं । आजीवन उन्हें लोपने का त्याग है। आप संघ के प्राण हैं । श्रमण परम्परा के अधिनेता हैं। आप पर मुझे पूर्ण श्रद्धा है । आपकी आज्ञा में चलने वाले साधु-साध्वियों को भगवान महावीर के साधु-साध्वियों के समान शुद्ध साधु मानता हूं। अपने आपको भी शुद्ध साधु मानता हूं । मैं आपकी आज्ञा लोपने वालों को संयम मार्ग से प्रतिकूल मानता हूं। • मैं आपकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करूंगा। .प्रत्येक कार्य आपके आदेश पूर्वक करूंगा। .शिष्य नहीं करूंगा, दलबन्दी नहीं करूंगा। • आपके कार्य में हस्तक्षेप नहीं करूंगा। • आपके तथा साधु-साध्वियों के अंश मात्र भी अवर्णवाद नहीं बोलूंगा। • किसी साधु साध्वी में दोष जान पड़े तो स्वयं उसे या आचार्य को जताऊंगा। सिद्धान्त, मर्यादा या परंपरा के किसी भी विवादास्पद विषय में आप द्वारा दिए गए निर्णय को श्रद्धापूर्वक स्वीकार करूंगा। • गण से बहिष्कृत या बहिर्भूत व्यक्ति से संस्तव नहीं रखूगा । • गण के पुस्तक-पन्नों आदि पर अपना अधिकार नहीं रखूगा। • पद के लिए उम्मीदवार नहीं बनूगा। • आपके उत्तराधिकारी की आज्ञा सहर्ष शिरोधार्य करूंगा। पंच पदों की साक्षी से मैं इन सबके उल्लंघन का प्रत्याख्यात करता हूं। मैंने यह लेखपत्र आत्म-श्रद्धा और विवेक पूर्वक स्वीकार किया है । संकोच, आवेश या प्रमादवश नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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