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जबर समझ हुए हिए मांहियो, तो उ तुरंत देवे छिटकायो । तिणरे प्रीत औरों संपूरी, गणपति स्यूं प्रती अधूरी || ६ || परचा वाला साहमा नहीं जोंवे, वले नयण बयण नहीं मोवे । परचो छूटण रो राह उपायो जय गणपति एम जणायो ॥७॥ परचा वाला की भावना भावे, जाणे दरशण करवा कद आवे आयो देखहियो अतिहरषे, जांण जंवरी नग ने परखे ||८|| उगणीसे वर्ष उगणीसे, मगसर वदि सातम दिवसे ।
प्रथम मर्यादा दिन सुखदायो, परचा ने जय जश ओलखायो ॥ ॥
निद्रा, हास्य, विकथा, ये साधना के विघ्न हैं, इसलिए नींद को बहुमान न दें हास्य और विकथा का वर्जन करें तथा ध्यान और स्वाध्याय के द्वारा आत्मा को भावित करें ।
परिशिष्ट १८१
निद्दं च न बहुमन्नेज्जा, सप्प हासं विवज्जए । महो कहाहिं नरये, सज्झायम्मि रओ सया ॥
सज्झाय-सज्झाणरयस्स ताइणो, अपावभावस्स तवे रयस्स । विसुज्झई जंसि मलं पुरेकडं, समीरियं रुप्पमलं व जोइणो ॥
महाव्रत, समिति-गुप्तियों तथा गण की छोटी-बड़ी सभी मर्यादाओं का सम्यग् पालन करनेवाला मुनि आचार्य की आराधना करता है, श्रमणों की आराधना करता है और सब लोगों की दृष्टि में वह पूज्य होता है। तथा जो उनका सम्यग् पालन नहीं करता व न आचार्य की आराधना करता है और लोगों की दृष्टि में पूज्य नहीं होता है ।
आयरिए आराहेई समणे यावि तारियो । गिहत्था विर्णश्यं पू, जेण जाणंति तारिसं । आयरिए नाराहेई, समणे यावितारिसी । गिहत्था विणं गरिहति, जेण जाणंति तारिसं ॥
इसीलिए विनीत साधु-साध्वियां, आज्ञा, मर्यादा, आचार्य, गण और धर्म की सम्यक् आराधना करें और धर्म शासन की गौरव वृद्धि करें ।
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आणं सम्म आराहइस्मामि । मेरं सम्मं पालयिस्सामि || आयरियं सम्मं आराहइस्सामि । गणं सम्मं अणुगमिस्सामि । धम्मं न कयावि जहिस्सामि ॥
आणं सरणं गच्छामि । मेरं सरणं गच्छामि || आयरियं सरणं गच्छामि । गणं सरणं गच्छामि ।
धम्मं सरणं गच्छामि ॥
— तेरापंथ मर्यादा और व्यवस्था । (श्रीमद् जयाचार्य, पृ० ४७५. फे
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