Book Title: He Prabho Terapanth
Author(s): Sohanraj Kothari
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 182
________________ आचार्यश्री भिक्षु की मान्यताएं व मर्यादाएं. १६६ आत्म-साधना हेतु किए गए सारे कार्य अपनी या अन्य किसी की हार्दिक भावना को विशुद्ध बनाकर ही किए या करवाए जा सकते हैं और बलात् या प्रलोभनवश कराए गए कार्य कभी धर्म की कोटि में नहीं आते ! धन या बल-प्रयोग मे कभी धर्म या अहिंसा निष्पन्न नहीं होती। साधु जो छ: काया के रक्षक होते हैं, वे ऐसी क्रिया करवाने या उसका अनुमोदन करने में प्रवृत्त नहीं हो सकते, जिसमें किसी प्रकार की हिंसा या परिग्रह को प्रश्रय मिले । आचार्य भिक्षु के शब्दों में--- "देव, गुरु, धर्म ने कारण, मूढ़ हणे छ: कायो रे, उल्टा पड़िया जिन मार्ग थी, कुगुरां दिया बहकायो रे ॥" "वीर कह्यो आचारंग मांहे, जिण ओलखियो तंत सारो रे, समदृष्टि धर्म ने कारण न करे, पाप लिगारो रे ॥" "लोही खरड्यो जे पितांबर, लोही सुं केम घोवायो रे, तिम हिंसा में धर्म कियां थी, जीव उज्जलो किम थायो रे।" "संसार तणो उपकार करे छ, तिण रे निश्चेई संसार वधतो जाणो, मोष तणो उपकार करे ?, तिण रे निश्चेई नेड़ी दीसे निरवाणो ॥" "एकण रे देवे, चपेटी, एकण रो दे उपद्रव मेटी, ए तो राग द्वेष नो चालो, दशवकालिक संभालो।" "जीव खाधों, खवायों, भलो जाणियों, तीनूंई करणां पाप हो, आ सरद्या प्ररूपे जो भगवंत री, ते पिण दीधी अगन्या उत्थाप हो।" ४. आत्मार्थी व्यक्ति को न असंयममय जीवन काम्य है, न असमाधिपूर्ण मृत्यु ही । ऐसा व्यक्ति अपने लिए तथा अन्य के लिए आत्म-शुद्धि की साधना या मोक्ष मार्ग में प्रवृत्ति की कामना करता है और यही कामना विशुद्ध धर्म है। आचार्य भिक्षु के शब्दों में "जीव जीवे ते दया नहीं, मरे तेहो हिंसा मत जाण, मारण वाला ने हिंसा कही, नहीं मारे हो ते तो दया गुग खाण।" "वांछे मरणो जीवणो, तो धर्म तणो नहीं अंस ए अणुकम्पा कीयां थको, वधे कर्म नो वंश ।" "असंयती जीव रो जीवणो बंछे ते राग, मरणो बंछे ते द्वेष, तिरणो बंछे ते वीतराग देव नो मार्ग छै।" आचार्य भिक्षु ने सिद्धांत विपर्ययता के साथ-साथ तात्कालिन शिथिलाचार पर भी कड़ा प्रहार किया। उसका सजीव चित्रण उन्होंने 'सरधा री चौपई' व 'साधो रे आचार री चौपाई' आदि रचनाओं में स्थान-स्थान पर किया है। जिसकी किंचित झांकी इस प्रकार प्रस्तुत है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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