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४. मर्यादा-अनुशासन का पुष्टिकाल .
पंचमाचार्य श्री मघवागणि
(संवत् १९३८-१९४६)
जन्म, वंश-परिचय मघवागणि का जन्म संवत् १८९७ के चैत्र शुक्ला ११ रविवार को बीदासर में हुआ, इनके पिता का नाम पूरणमलजी बेंगाणी व माता का नाम बन्नोंजी था। संवत् १६०१ के कार्तिक माह में आपकी छोटी बहन गुलाब कुंवर का जन्म हुआ, दोनों भाई-बहनों का आकार-प्रत्याकार व सहज सौन्दर्य युगलों (यौगलिक पुरुष) के सदृश था। वै प्रतिदिन चन्द्रकला की तरह वृद्धिंगत होने लगे । आपकी अल्पायु में आपके पिता का देहान्त हो गया। एक बार सरदार सती बीदासर आए, तथा उनके स्थान पर ठहरे । उन्होंने धार्मिक संस्कार भरने और तत्त्व ज्ञान कंठस्थ करने की प्रेरणा दी। श्रीमद् जयाचार्य ने स्वरूपचन्दजी आदि १२ सन्तों सहित संवत् १९०८ का चातुर्मास बीदासर किया । उस समय बन्नोंजी व उनके दोनों पुत्र-पुत्री दीक्षा लेने के लिए तैयार हुए, पर गुलाब कुंवर के दीक्षा कल्प न आने के कारण उन्हें प्रतीक्षा करनी पड़ी। मघवागणि के बाल साथियों को उनके दीक्षा लेने का पता लगा, तो उन्होंने इसे ही खेल का विषय बना लिया । सब बालक मघराजजी को सम्बोधित करते हुए कहते, 'मत्थेण वंदामि, मघजी स्वामी' एक बालक मघजी का अभिनय कर कहता 'जी' और फिर सब बालक समवेत स्वरों से गाते, 'थारे पातरे में घी, बैठ्यो ठण्डो पानी पी ।' जयाचार्य ने जब यह बात सुनी तो इसे शुभ शकुन मानकर कहा, 'बालक मघवा संघ का महान् प्रभावशाली व पुण्यवान साधु होगा।'
दीक्षा प्रसंग
मघवा की उत्कट अभिलाषा व बन्नोंजी की प्रार्थना पर श्रीमद् जयाचार्य ने मगसिर वदि ५ को मघवा को दीक्षा देना स्वीकार किया । अभिभावक जनों ने उत्साहपूर्वक दीक्षा के उत्सव मनाए व मगसिर वदि ५ को मघराजजी अपने चाचा पोमराजजी के साथ भोजन करने के बाद, घोड़ी पर बैठकर, दीक्षा के लिए प्रस्थान
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