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युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी १४१
"प्रवर के बारे में उस निबन्ध के आधार पर कतिपय ज्ञातव्य तथ्य इस प्रकार हैं
जन्म व वंश-परिचय
'हिन्दुस्तान के तत्कालीन जोधपुर राज्य के अन्तर्गत एक कस्बा लाडनूं है । वहां संवत् १९७१ कार्तिक शुक्ला द्वितीया की निर्मल नीरव रात्रि में श्रेष्ठि झमरमलजी खटेड के घर में एक नये अतिथि का आगमन हुआ। उस घटना से घर और परिवार के वातावरण में कुछ अतिरिक्त प्रसन्नता का दर्शन हुआ, जो किसी दिव्यता का अज्ञात संदेश दे रहा था। परिवार में उस नवजात शिशु की पहचान 'तुलसी' नाम से हुई । अपनी मां की आठवीं सन्तान बालक तुलसी तेरापंथ धर्मसंघ के आठवें आचार्य की नजरों पर चढ़ेगा, यह कल्पना उस समय किसने की होगी? पर नियति ने जो संयोग उपस्थित किया, वह इतिहास का अद्भुत हस्ताक्षर बन गया। बालक तुलसी की शिक्षा-दीक्षा व जीवन निर्माण में सर्वाधिक योग मातुश्री वदनांजी का रहा । वे स्वयं पढ़ी-लिखी नहीं थीं किन्तु बच्चों में संस्कार भरने की कला में निष्णात थीं। इसलिए उन्होंने बच्चे को जन्म के साथ जीवन भी दिया । पिता झूमरमलजी का साया पांच वर्ष की उम्र में ही बालक के सिर से उठ चुका था। शैक्षणिक दृष्टि से बालक तुलसी कुछ महीने अध्यापक श्री नंदलालजी के पास पढ़े। उसके बाद दो वर्ष प्राथमिक पाठशाला में अध्ययन किया जहां प्राध्यापक हीरालालजी ने पढ़ाया । सूक्ष्मग्राही मेधा से तुलसी को दो वर्ष की शिक्षा ने ही काफी प्रौढ़ बना दिया और वह व्यावसायिक बुद्धि से बंगाल जाने की सोचने लगा। किसी कारणवश बंगाल जाना नहीं हुआ और यहीं से बालक के जीवन में नया मोड़ आना प्रारम्भ हुआ।
दीक्षा
विक्रम संवत् १९८२ का वर्ष चल रहा था। उन दिनों तेरापंथ धर्मसंघ के आठवें आचार्य पूज्य श्री कालूगणि लाडनं पधारे। माता की प्रेरणा से बालक तुलसी ने उनके दर्शन किए और प्रथम दर्शन में ही उसने अपने समग्र अस्तित्व को गुरु के प्रति समर्पित कर दिया। प्रतिदिन कई घण्टों तक वह दूर खड़ा-खड़ा अनिमेष दृष्टि से कालूगणि को देखता और कल्पना करता-'काश ! मैं इनका शिष्य होता इनके पास बैठता, पढ़ता आदि ।' एक दिन कालूगणि की दृष्टि बालक पर टिकी और उन्हें उसमें छिपी सम्भावनाओं का आभास मिल गया। आकर्षण के दो बिन्दु एक स्थान पर मिल गए । बालक तुलसी कालूगणि का शिष्य बनने का स्वप्न संजो चुका था और कालूगणि की आगम सोची दृष्टि में वह उनका शिष्य ही नहीं, उत्तराधिकारी बन चुका था, दोनों ओर से प्रयत्न हुए, परिवार की ओर से कुछ बाधाएं आयीं । बालक ने साहस किया और हजारों लोगों की उपस्थिति में प्रवचन
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