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१५४ हे प्रभो ! तेरापंथ
३. शोध
___ संवत् २०१२ के आसाढ़ शुक्ला १५ के दिन संकल्प लेकर आचार्यश्री, युवाचार्यश्री तथा उनके शिष्य समुदाय ने जैन आगमों का सरल, सुबोध एवं शोधपरक भाषा में सम्पादन किया तथा अनेक आगम, कोष, समीक्षाएं अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं । आचार्य भिक्षु का समग्र साहित्य सम्पादित होकर प्रकाशित हो चुका है तथा जयाचार्य के विशाल साहित्य का सम्पादन हो चुका है तथा क्रमिक प्रकाशन हो रहा है । मुनि नवरत्नमलजी ने तेरापंथ धर्म संघ में अब तक दीक्षित २२६७ साधु साध्वियों के बारे में प्रमाणित तथ्यों का संकलन कर 'शासन-समुद्र' (भाग १ से १८) की रचना की है। जिसे तेरापंथ का विश्व कोश कहा जा सकता है।
साधन के विकास एवं पुष्टिकरण की व्यवस्था संयम के पथ पर चरण बढ़ाते ही साधक-संस्कार पुष्ट हो जाएं, यह सम्भव नहीं है। अतः उसका आधार पुष्ट बनाने हेतु आचार्यश्री के शासनकाल में निम्नलिखित नवीन व अभूतपूर्व योजनाएं प्रारम्भ हुईं
१. मुमुक्षु श्रेणी व पारमार्थिक शिक्षण संस्था
संवत् २००५ के फागुण में सरदारशहर में आचार्यप्रवर की प्रेरणा से 'पारमार्थिक शिक्षण संस्था' की स्थापना हुई। जिसमें दीक्षा लेने के इच्छुक भाई बहन प्रवेश पाकर समुचित शिक्षा और साधना का अभ्यास करें। ताकि उनकी वृत्ति, स्वभाव तथा जागरूकता के आधार पर दीक्षा की योग्यता का अंकन हो सके । अब तक इस संस्था में हजारों मुमुक्षु बहन-भाइयों ने प्रवेश पाकर शिक्षा और साधना का अभ्यास किया है । उनमें से सैकड़ों दीक्षाएं अब तक हो चुकी हैं। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी प्रभृति अनेक प्रख्यात साध्वियां इस संस्था की देन हैं।
२. समण-समणी श्रेणी
गृहस्थ तथा साधुओं के बीच साधकों की वह श्रेणी जो कतिपय (आहार, विहार, निहार) अपवादों के साथ महाव्रतों की साधना करते हुए अध्यात्म का प्रचार-प्रसार, कर सके । संवत् २०३७ के कार्तिक सुदि २ को इस श्रेणी का प्रादुर्भाव हुआ तथा लाडनूं में छः बहनों ने समण दीक्षा ली। समण-समणियां अब तक इंगलैंड, नेपाल तथा भारत के कई सुदूर खण्डों की यात्रा कर अध्यात्म भावना का प्रचार कर चुकी
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