Book Title: He Prabho Terapanth
Author(s): Sohanraj Kothari
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 174
________________ आचार्यश्री तुलसी का युग १६१ जाएगी और आपका सेवा व समर्पण भाव उसी सहजता से उन्हें जीवन भर मिल जाएगा। आपकी तीक्ष्ण बुद्धि, सतत् अभ्यास व विनम्र भावना से आपने बाल्यकाल में अपूर्व ज्ञान राशि संचित कर ली । संवत् १६६३ में आचार्यश्री तुलसी के पदासीन होने के बाद आपकी प्रतिभा में निखार आता गया । कुछ वर्षों में ही संस्कृत, प्राकृत, न्याय, दर्शन, योग, व्याकरण, सिद्धान्त, तत्त्वज्ञान आदि अनेक विद्याओं में आप पारगामी मनीषी बन गए व आचार्यश्री के अनुग्रह से चतुर्मुखी दिशाओं में आपका विकास होता रहा। संस्कृत में आशु कविता और प्राकृत में धारा प्रवाह प्रवचन आपकी विशेष उपलब्धि रही। हिंदी भाषा में निबंध, कविता एवं प्रवचन की विशिष्ट शैली बनी । आपकी इन विशेषताओं के कारण आचार्यश्री • आपको सम्मानित करते रहे । महाप्रज्ञ अलंकरण, युवाचार्य मनोनयन व योग पुनरुद्धारक के रूप में संवत् २०३५ कार्तिक शुक्ला १३ को युग-प्रधान आचार्यश्री ने आपको 'महाप्रज्ञ' की विरल उपाधि से अलंकृत किया व उसी वर्ष मर्यादा - महोत्सव पर आचार्यश्री ने राजलदेसर में तेरापंथ धर्म संघ का सर्वोच्चपद युवाचार्य मनोनीत कर प्रदान किया । आचार्यश्री ने अमृत महोत्सव पर आपको 'जैन योग पुनरुद्धारक' की उपाधि से सम्मानित किया। आचार्यप्रवर की तथा आपकी गुरु-शिष्य जोड़ी 'महावीर - गौतम' युग की याद दिलाती है । आचार्यश्री की भावना, संकेत, आदेश, निर्देश को आपने सदा सशक्त अभिव्यक्ति दी है । महाकवि दिनकर के शब्दों में आप आचार्यश्री जैसे अनुभूत परमहंस के व्याख्याकार स्वामी विवेकानंद हैं । तेरापंथ धर्मसंघ को आपका अपूर्व योगदान १. संवत् २०१२ से आचार्यश्री की वाचना में जैन आगमों का सुव्यवस्थित सम्पादन व अर्थं, टीका, समीक्षा सहित करने में अब तक आप अथक प्रयास कर रहे हैं । २. जैन आगमों में यत्र-तत्र बिखरे ध्यान योग के सूत्रों को गुंफित कर आज के युगीन समस्याओं के निराकरण तथा अध्यात्म से परिपूरित वैज्ञानिक व्यक्तित्व के निर्माण हेतु प्रेक्षाध्यान की ध्यान प्रणाली का आपने प्रणयन किया जिससे सहस्रों लोगों ने अब तक तनाव मुक्ति और सही जीवन जीने की युक्ति प्राप्त की। धर्म का प्रायोगिक स्वरूप प्रथम बार लोगों के सामने आया । ३. चरित्र निर्माण की दिशा में वर्तमान शिक्षा प्रणाली को पूर्ण बनाने की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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