________________
युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी - नवमाचार्य
( संवत् १९६३ - सम्प्रति )
अगाध व्यक्तित्व
1
युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी का शासनकाल तेरापंथ धर्मसंघ का स्वर्णयुग कहा जा सकता है । जिस संघ को आचार्यश्री भिक्षु ने आधार दिया, श्रीमद् जयाचार्य ने पुष्ट व परिमार्जित आकार दिया, उसको आचार्यश्री तुलसी ने सुरम्यता एवं भव्यता प्रदान कर दी । आपने सारे संघ को युगबोध देकर उसका कायाकल्प कर दिया एवं अनेक नानाविध आयामों में अभूतपूर्वं प्रगति करके, जन-जन को चमत्कृत कर दिया । सारे राष्ट्र में शीर्षस्थ अध्यात्म-पुरुषों में श्रद्धा सहित आपका स्मरण किया जाता है तथा तेरापंथ धर्मसंघ को अत्यंत चेतनाशील, जागरूक विकसित संघ के रूप में समादर दिया जाता है । श्रीमद् कालूगणि जैसे विज्ञ परीक्षक की नजरों में आप मात्र ११ वर्ष के थे, तब चढ़ गए व उन्होंने ११ वर्ष तक पूरी मेहनत के साथ तराश कर व साज-संवार कर अमूल्य आलोकपूर्ण हीरे की तरह आपको जनता के सामने प्रकट किया। अपने गुरु से अपार, अपरिमित व अगाध वात्सल्य पाकर आपका व्यक्तित्व आकाश की तरह ऊंचा व सागर की तरह गहरा बन गया और आपके व्यक्तित्व को किसी लेखनी से शब्दों में समाहित नहीं किया जा सकता, किसी तूलिका या रंग से चित्रित नहीं किया जा सकता । आप में सब कुछ अमाप है, अतुल है, अगाध है, असीमित है, अमूल्य है जिसे आंकने के लिए कोई विज्ञ कलाकार या अपूर्व सृजनकर्ता ही साहस कर सकता है । तेरापंथ की संक्षिप्त झांकी में उसे समाहित करना सम्भव नहीं है, पर झांकी अधूरी नहीं रह जाए इसीलिए अमृत महोत्सव राष्ट्रीय समिति, राजसमन्द द्वारा सद्यः प्रकाशित साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी के 'आचार्यश्री तुलसी' पर लिखे लघुनिबन्ध के कतिपय अंशों को उद्धृत करके तथा उनके आधार पर अपनी भावना का उल्लेख कर मैं अपने कर्तव्य की इतिश्री समझंगा । आचार्यप्रवर ने इतिहास का निर्माण किया है तथा आगे भी इतिहास के नव-निर्माण की आपसे विपुल संभावनाएं हैं, अतः उसका अलग स्वतन्त्र ग्रन्थ में सविस्तार प्रमाणित आलेख हो, यही समुचित एवं उपादेय है । आचार्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org