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युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी १४७
समुज्ज्वल संभावनाओं के उजागर होने की प्रतीक्षा की जा सकती है । हमारी शुभ कामना है कि ऐसे वर्चस्वशील, दूर-द्रष्टा एवं प्रेरिक आचार्य सदा-सर्वदा स्वस्थ रहें तथा शतायु होकर समूचे लोक को आलोकित करते रहें? उनके जीवन की संक्षिप्त-सी झलक इसमें दी गई है जो संभवतः उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व का शतांश भी नहीं है। उनके जीवन के हर ग्यारह संवत्सरों के कालक्रम को प्रमुख प्रवृत्ति के साथ इस प्रकार जोड़ा जा सकता है1. सन् १९१४ से १९२५ (संवत् १९७१-८२) मां से संस्कार प्राप्ति । २. सन् १९२५ से १६३६ (संवत् ८२-६३) गुरु के चरणों में नया
परिवेश। ३. सन् १६३६ से १९४७ (संवत् १९६३-२००४) ठोस धरातल का
निर्माण या धर्मक्रान्ति के विस्फोट की
तैयारी। ४. सन् १९४७ से १६५८ (संवत् २००४-१५) उपलब्धियों का युग या
धर्मकान्ति
श्रीगणेश। ५. सन् १९५८ से १९६८ (संवत् २०१५-२६) विकास के बढ़ते चरण । ६. सन् १९६६ से १९८० (संवत् १०२६-२०३७) आध्यात्मिक अवदान। ७. सन् १९८० से १६६१ (संवत् २०३७-२०४८) अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज
पर। अन्तिम दो एकादशक आपकी अन्तर्मुखी साधना और वीतरागता की ओर बढ़ते चरण का समय होंगे, ऐसी कल्पना सहज की आ सकती है।
आचार्यप्रवर के बहु आयामी व्यक्तित्व में चेतनाशील सन्त, प्रखर अनुशास्ताअध्यात्म-प्रवक्ता, सत्साहित्य सृजक, प्रबुद्ध चेता कवि, महान शिक्षक, कुशल व्यवस्थापक, व्यवहार कुशल नेता, दूरदर्शी भविष्य द्रष्टा, गंभीर अध्येता, अन्तर्मुखी साधक, प्रायोगिक धर्म के जन्मदाता, अणुव्रत प्रवर्तक, क्रान्तिकारी विचारक आदि अनेकानेक स्वरूप निहित हैं। जिसमें प्रत्येक विषय पर अनगिनत पृष्ठ भरे जा सकते हैं। उनके संस्मरण लाखों लोगों के मानस को आंदोलित कर रहे हैं तथा स्वल्प सम्पर्क होने पर भी उन्होंने मुझ जैसे विश्लेषक बुद्धिजीवी को सहजता व गहनता से प्रभावित किया है। मेरी भावना है कि मैं उनके किसी एक स्वरूप का विषद वर्णन करने में सफल बनूं और मेरा विश्वास है कि उनके आशीर्वाद से मेरी भावना अवश्य साकार होगी, फलेगी।
संक्षेप में आचार्यश्री भिक्षु से आचार्यश्री तुलसी तक तेरापंथ के यशोगाथा की मात्र एक झलक प्रस्तुत कर मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मान रहा हूं।
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