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नवयुग का उदय व विकास १३३ भादवा सुदी १ को मध्याह्न में मुनि तुलसी को बुलाकर आचार्यवर ने दो स्पष्ट निर्देश दे दिए-१. 'संघ के सैकड़ों साधु-साध्वियों की जागरूकता समान नहीं हो सकती, कोई प्रमाद व स्वखलना भी कर सकता है, तुम्हारा कर्तव्य है कि यदि उसकी भावना शुद्ध संयम पालन की हो व प्रायश्चित करे तो तुम हर तरह से सहयोग कर उसे साधुत्व में स्थिर रखना । २. साध्वियां बड़ी संख्या में हैं, काम कर सकती हैं, उनकी शिक्षा पर ध्यान देना जरूरी है। उनका विकास कैसे हो, इस पर चिन्तन करके क्रियान्विति करना।' अंतिम शिक्षा में तेरापंथ के विकास का भविष्य प्रतिबिम्बित हो रहा था। उनकी आंखों में वह स्वप्न उतर रहा था जिसे वे पूरा कर न सके । मुनि तुलसी ने शिक्षाओं को शिरोधार्य कर दोनों की पूर्ति करने का आशीर्वाद चाहा। द्वितीया की रात्रि में आचार्यवर ने मुनि चंपालालजी को दूसरे दिन सूर्योदय होते ही स्याही, लेखनी, श्वेत-पत्र व पाटी लाने का निर्देश दिया । तृतीया का प्रभात आया। आपके जीवन का यह स्वर्णिम प्रभात था। ऐसा सूर्योदय कभी नहीं हुआ । आप आचार्य बने, तब दूसरों के लिए सूर्योदय हुआ, आपकी यात्रा का प्रारम्भ हुआ। पर यह प्रभात आपकी सजगता व कुशलता से यात्रा की सम्पन्नता का सूचक था और इसी में आप आनन्दित हो रहे थे। ___ आचार्यवर ने सूर्य की ओर मुंह कर एक पैर पट्ट पर व दूसरा धरती पर रखते, घुटने पर पत्र रखकर, कांपते हाथों, अकंपित चेतना से युवाचार्य नियुक्ति पत्र लिखा । हाथ व्रण की वेदना और क्षीण शक्ति में भी उन्होंने अपने जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य विधिवत् अपने हाथों से सम्पन्न किया। मुनि तुलसी को विधिवत् तेरापंथ धर्मसंघ का भावी आचार्य नियुक्त किया और तत्र विराजित सभी साधुसाध्वियों व श्रावक-श्राविकाओं के समक्ष वह पत्र मुनि मगनलालजी से पढ़वाया जो पत्र इस प्रकार है
'श्री भिक्षु पाट भारीमाल। भारीमाल पाट रायचंद । रायचंद पाट जीतमल । जीतमल पाट मघराज । मघराज पाट माणकलाल । माणकलाल पाट डालचंद ।
डालचन्द पाट कालूराम । कालूराम पाट तुलछीराम । विनयवंत आज्ञा प्रमाणे चालसी, सुखी होसी। संवत् १६६३ भादवा सुदी ३. शुक्रवार ।' आचार्यवर ने पत्र लेकर युवाचार्य श्री तुलसी को दिया। स्वयं श्वेत चादर धारण कर, अपने हाथों तत्काल उसे युवाचार्यश्री को ओढ़ाया, सब ओर आचार्यवर एवं युवाचार्यश्री के जय-जयकार के नारे गूंजने लगे। मंत्री मुनि की. प्रसन्नता का पारावार नहीं था। उन्होंने दोहा रचकर सुनाया।
'रंग भवन में रंगरली, पद युवराज प्रकाश, मुनिच्छत्र महिमानिलो, पूरण कर दी प्यास ।।
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