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१३६ हे प्रभो ! तेरापंथ
तपस्वियों के सहायक आचार्यवर की उत्कट सेवा करने वाले व मत्रा मुनि के विशेष सहयोगी। मुनि भीमराजजी, सोहनलालजी (चूरू), कानमलजी व नथमलजी (बागोर) हेम शब्दानुशासन के प्रथम अध्येता व संस्कृत साहित्य सृजक। मुनि सोहनलालजी (चुरू) सुघड़ लिपिक, उद्भट कवि, गायक, प्रवक्ता और सेवा भावी-बेजोड़ संघनिष्ठ, सभी परिस्थितियों में समभावी। मुनि नथमलजी संस्कृत, गद्य-पद्य लेखन में विरल क्षमताशाली। आपको युग प्रधान आचार्यश्री तुलसी ने इन दोनों को 'शासन स्तम्भ
पद से उपमित किया। ३२. मनि अमीचंद-वैराग्य भाव से दीक्षित-लिपि कला में कुशल। ३३. मुनि हेमराजजी (आत्मा) विशिष्ट शास्त्र वेत्ता व चर्चावादी वर्तमान
आचार्यप्रवर ने जिनसे शास्त्रों के सूक्ष्म रहस्यों की जानकारी की। आपको
युग प्रधान आचार्यश्री तुलसी ने 'शासन स्तम्भ' से उपमित किया। ३४. मनि शिवराजजी 'कोटवाल'-आचार्यवर की दिनचर्या में जागरूक-सेवी। ३५. मनि सूरजमलजी-तार्किक व दूसरों को समझाने की कला में निष्णात ।
सर्वप्रथम सुदूर प्रदेशों में पधारे। ३६ से ४२. सर्व मुनिश्री गणेशमलजी (जसोल), छोगजी (पचपदरा) केवलचंदजी
व जीवरामजजी (डूंगरगढ़) ने सपरिवार क्रमशः तीन, दो-दो पुत्रों व पुत्र-पुत्री सहित दीक्षा लेकर धर्मसंघ की प्रभावना को बढ़ाया। मुनि गणेशमलजी के पुत्र मुनि जीवनमलजी परम वैरागी, तत्त्वज्ञ व ऋजु प्रकृति के संत हुए। मुनि केवलचंदजी के पुत्र धनमुनि व चंदनमुनि ने शासन की बहुत सेवा की पर अंत में वे गण से बाहर हो गए। वे दोनों व आचार्यश्री तुलसी व मुनि गणेशमलजी (गंगाशहर) भिक्षु
शब्दानुशासन के प्रथम अध्येता हुए। ४३. मुनि चंपालालजी (लाडनूं) आचार्यवर की सेवा व संरक्षण में प्रतिक्षण सजग
व तत्पर । आचार्यश्री के अग्रज-युग प्रधान आचार्यश्री तुलसी द्वारा 'शासन
स्तम्भ' उपमा से उपमित। ४४. मुनिश्री अमोलकचन्दजी-विवाहित होकर ब्रह्मचारी रहे व बड़े वैराग्य से
पति-पत्नी ने दीक्षा ली। प्रथम अंग्रेजी भाषा के अध्येता, श्रमशील, पंजाब
प्रांत में प्रथम प्रबल प्रचारक, अत्यन्त आस्थावान् सजग साधु । ४५ से ५५. मुनि किशनलालजी, हुलासमलजी, शिवराजजी, जयचंदलालजी,
(सुजानगढ़), सोहनलालजी (सुजान), मन्नालालजी (सरदारशहर)..
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