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सप्ताचार्य श्रीमद् डालगणि १११ ३१/२, ४५/१.
अन्तिम तपस्या (संलेखना) ५४ दिन की व अनशन नौ घण्टे का आया। ३. मुनि तेजमालजी-(फतेहगढ़ कच्छ) ___ संयम पर्याय १९५४ से १६६५ तक संघ के स्वामी-भक्त एवं प्रख्यात अग्रणी व प्रखर व्यक्तित्व । संवत् १९६५ में डालगणि ने मुनि लीलाधरजी ठाणा ३ तथा आपको तीन ठाणों से कच्छ में चातुर्मास हेतु भेजा । चातुर्मास पश्चात् लीलाधरजी और तीन अन्य संत साकरजी, कल्याणजी, किस्तुरजी की संघ-विरोधी गतिविधियों के कारण आपने उनका संघ से सम्बन्ध-विच्छेद कर दिया । वे सभी तथा आप स्वयं कच्छ के थे।
श्रीमद् डालगणि के युग के प्रमुख शिष्य शिष्याएं १. मुनि नथमलजी (रोंछेड़)
संयम पर्याय १६५६ से १९६६ तक, शास्त्रों के विशेषज्ञ, पाप भीरु, फक्कड़ व प्रभावक अग्रणी । अन्त में ५४ दिन की संलेखना व १४ दिन का अनशन । युगप्रधान आचार्यश्री तुलसीद्वारा 'शासन स्तंभ' उपाधि से उपमित । २. मुनि हीरालालजी (आमेट)
संयम पर्याय (१९६० से २००८ तक)। आचार्यों के कृपा पात्र, ध्यानी, सेवाभावी-वर्षों तक आचार्यों की सतत सेवा की तथा संवत् १९९७ में अग्रणी बने । सुघड़ शरीर, अवधृत वृत्ति, जप-तप-ध्यान में सतत सजगता । ३. मुनि सागरमलजी (भिवानी)
संयम पर्याय संवत् १९६१ से २००६ तक । आगम, गणित, चित्रकला, लेखनकला में निष्णात व प्रख्यात अग्रणी। ४. मुनि बछराजजी (मोखुणदा)
संयम-पर्याय संवत् १९६१ से २०१२ तक। अग्रणी शासन भक्त, निरपेक्ष वृत्ति के धनी, तपस्वी, आत्मार्थी तथा प्रमुख अग्रणी-अन्त में ५२ दिन का दीर्घ अनशन करके समाधि-मरण प्राप्त किया।
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