Book Title: He Prabho Terapanth
Author(s): Sohanraj Kothari
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 104
________________ मर्यादा-अनुशासन का पुष्टिकाल ६१ १४/१, १६/१, १७/१, १६/१, २६/१ =सर्व दिन ७५६० (२१ वर्ष १ माह)। संवत् १९७७ जेठ से आपने जीवन पर्यन्त एकान्तर तप किए। संवत् १९८६ से गुड़ शक्कर चीनी तथा औषध का परित्याग किया, आजीवन २७ निश्चित द्रव्यों का परिमाण किया व प्रतिदिन ११ द्रव्य से अधिक नहीं लेतीं । पारणे में ठण्डा खींचडा या छाछ प्रहर दिन बाद लेतीं । आप तपस्या के साथ-साथ स्वाध्याय, स्तवन, जाप, स्मरण करती ही रहीं। ___ संवत् १९६३ भादवा सुदि ६ को आपके पुत्ररत्न श्रीमद् कालूगणि के स्वर्गवास का समाचार सुनकर आप शान्त व स्थिर रहीं। आचार्यश्री ने शीघ्र आकर आपको दर्शन दिए । संवत् १६६६ का चातुर्मास आपके पास बीदासर किया। संवत् १९९७ में आपकी रुग्णता के समाचार सुनकर आचार्यश्री पुनः बीदासर पधारे, महाव्रतों का पुनरावर्तन और आलोचना करवाई। चैत वदि ७ को सायंकाल ४ बजकर ४० मिनट पर आजीवन तिविहार अनशन करवाया। चैत वदि ११ को प्रातः आपने स्वर्ग प्रयाण कर दिया । इस प्रकार एक सुदीर्घ यशस्वी तपोमय जीवन का अंत हुआ। ४. महासती कानकुंवरजी आपका जन्म संवत् १९३० भादवा सुदि ६ को सालासर में लछीरामजी मालू व उनकी धर्मपत्नी चंदनाजी के घर हुआ। अपनी मौसी छोगोंजी के साथ ही आपमें वैराग्य भावना जागृत हुई और उनके साथ ही आपकी दीक्षा हुई । आपने ५ आगम, अनेक तात्त्विक ग्रन्थ, १५ थोकड़े, ८ बड़े व्याख्यान, ४ संस्कृत ग्रंथ तथा अनेक गीतिकाएं कंठस्थ किए। संवत् १९५५ में आप अग्रगण्य बनीं । संवत् १९६६ में श्रीमद् कालूगणि ने आपको सब काम और बोझ बख्शीश करके अपने साथ रखा। आप उस युग की विदुषी, प्रवचनकार साध्वी थीं । दोपहर में सन्तों के स्थान पर कई वर्षों तक आपने व्याख्यान दिया। संवत् १९८१ में आपको साध्वीप्रमुखा के पद पर नियुक्त किया गया। आपं साहसिक साध्वी थीं तथा आपको वचनसिद्धि थी। संवत् १९८७ में आपको मोतियाबिंद हो गया जिसका सफल ऑपरेशन साध्वी सन्तो कोंजी ने किया साध्वी छगनोंजी २७ वर्ष आपकी सेवा में रहीं। संवत् १९६० से तीन वर्ष तक अस्वस्थता के कारण आप राजलदेसर स्थिरवास में रहीं। सवत् १९६३. के भादवा वदि ५ की रात्रि में आपका स्वर्गवास हो गया। श्रीमद् कालूगणि का वियोग आपको देखना नहीं पड़ा । आप पांचवीं साध्वीप्रमुखा थीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206