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४६ हे प्रभो ! तेरापंथ
मुनि हीरजी ने राजनगर में व मुनि वर्द्धमानजी ने केलवा में किए । सं०: १८८३ में उदयपुर चातुर्मास के पश्चात् आप ५४ साधु-साध्वियों सहित (जिनमें मुनि जीतमलजी भी थे ) मालवा प्रदेश पधारे व खाचरोद, उज्जैन, नोलाई, रतलाम, झाबुआ आदि क्षेत्रों में अध्यात्म की अपूर्व लहर पैदा की। सं० १८८४ में साधुओं के साथ पेटलावद चातुर्मास किया । आचार्यों का राजस्थान के बाहर यह प्रथम चातुर्माम था ।
थली प्रदेश में प्रवेश
संवत् १८८६ में आपका चातुर्मास पाली था । वहां बीदासर के शोभाचंदजी बैगानी ( प्रथम ) व उत्तमचन्दजी, पृथ्वीराजजी पंचाणदासजी प्रभृति प्रमुख व्यक्ति व्यापारार्थ आए व आपसे संपर्क किया। बीदासर में यति के शिथिलाचार व पाखण्ड से परेशान होकर व उनसे अनबन के कारण वे सही मार्ग की खोज में थे ।" आपके दर्शन व वार्तालाप से वे अत्यन्त प्रभावित हुए व स्थली प्रदेश ( बीकानेर डिवीजन - चूरू संभाग) में पधारने का निवेदन किया। अपरिचित व दूर स्थान होने से आपने वहां की जानकारी हेतु ईशरजी आदि दो संतों को भेजा, जिन्होंने वहां का भ्रमण करने के बाद वापस आकर निवेदन किया, "स्थली प्रदेश के लोगों में अच्छा संगठन, सरल प्रकृति व रहन-सहन में सादगी है । उनका प्रमुख व्यवसाय कृषि है । वे मोटा खाते, मोटा पहनते और सारा काम स्वयं करते हैं । भावुक व जिज्ञासु हैं, अतः वहां धर्म- जागृति की अच्छी संभावना है ।" श्रीमद्ऋषिराय वहां के संगठन, सरलता व सादगी की बात सुनकर प्रभावित हुए व सं० १८८६ के शेषकाल में स्थली प्रदेश पधारे । लाडनूं, बीदासर, रतनगढ़ होते आप चूरू तक पधारे व वहां २२ दिन बिराजे, फिर आपने संवत् १८८७ का चातुर्मास बीदासर किया व मुनि जीतमलजी का चूरू, मुनि स्वरूपचंदजी का रीणी, मुनि ईशरजी का रतनगढ़ तथा कई साध्वियों के अन्यान्य क्षेत्रों में चातुर्मास कराए । सभी क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रचार हुआ व धर्म-भावना व संघ के प्रति आकर्षण बना । श्रीमद् ऋषिराय ने बीदासर में पंचायती भवन की छत पर जिस मेड़ी में चातुर्मास किया, वह आज भी मेड़ी की हालत देखकर यह अंदाज लगाया जा सकता है कि हमारे पूर्व आचार्यों ने कितने कष्ट झेलकर धर्म की लौ जगाए रखी है । आज तो उस मेड़ी में सामान्य व्यक्ति भी खड़ा नहीं रह सकता । थली में इस तरह विधिवत् तेरापंथ का बीजारोपण श्रीमद् ऋषिराय ने किया और शनैः शनैः वही तेरापंथ का प्रमुख क प्रभावशाली क्षेत्र बन गया । अकेले बीदासर को ही तेरापंथ के आचार्यों के
के
विद्यमान है, पर उस
१. शासन समुद्र, भाग १ ख, पृ० २६० के आधार पर विश्लेषण ।
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पास बाजार में दूकानों
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