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६४ हे प्रभो ! तेरापंथ
नुसार आहार मिल सके, इसके लिए भोजन संबंधी द्रव्यों के कुछ नाम निश्चित कर दिये गये । एक पत्र ( धड़ा पत्र) पर द्रव्यों की सूची लिखकर दल के मुखिया को दी जाने लगी । दल का मुखिया अपने दल के सदस्यों से पूछकर या समझकर, भोजन व द्रव्यों की मात्रा उस पत्र में लिख देता और इसी आधार पर सब पत्रों के योग के अनुसार आहार मंगवाया जाता। आहार आने पर उन पत्रों के अनुसार, प्रतिदिन प्रतिनिधि साधु आहार का विभाजन कर देते । साधुसाध्वियां अपने-अपने स्थान पर अपने हिस्से का आहार कर लेतीं । प्रतिनिधि बंटवारा करने के बाद, उस स्थान को साफ कर, सबसे बाद में आहार करते । प्रतिदिन प्रतिनिधि बदलते रहते, आहार करते समय संविभाग में निष्ठा उत्पन्न करने के लिए कुछ समय तक प्रत्येक दल श्रीमद् जयाचार्य द्वारा रचित 'टहुका' (खाद्य संयम हेतु) बोलता पर बाद में व्यवस्था जम जाने पर इसकी आवश्यकता नहीं रही ।
श्रम का संविभाग
व्यक्तिगत कार्यों के अलावा सामूहिक कार्यों का भी समान उत्तरदायित्व निर्वाह करने के लिए श्रीमद् जयाचार्य ने अनेक साधु-साध्वियों के सम्मिलित होने पर, आहार विभाजन करने, धड़ा पत्र लिखने, पानी का वितरण करने, आचार्यों के लिए विराजने की चौकी बिछाने, संत-सतियों का सामान जान-अनजान में बाहर पड़ा न रह जाये, अतः उसकी चौकीदारी करने, रात्रिकाल में मूत्र विसर्जन ( परिष्ठापन ) करने आदि की जिम्मेवारी प्रतिदिन दीक्षा-क्रम से बड़े-छोटे के अनुसार प्रत्येक साधु-साध्वी पर डाल दी गई । उसे अनिवार्यतः यह कार्य करना होता। हर प्रकार के काम के विभाजन में सबको समान रूप से उत्तरदायित्व लेना पड़ता। साम्यवाद के राजनैतिक प्रयोग के बहुत पहले तेरापंथ धर्म संघ में साम्यवाद का प्रादुर्भाव हो चुका था ।
गण विशुद्धिकरण हाजरी
स्वामीजी द्वारा प्रणीत मर्यादाओं का श्रीमद् जयाचार्य ने वर्गीकरण कर 'गण विशुद्धिकरण हाजरी' (संक्षिप्त नाम 'हाजरी ) की संरचना की । हाजरी में शिक्षा व मर्यादा की घोषणाएं हैं व उनमें संघ में साधु-साध्वी कैसे रहे, उनका आहार-विहार शील-चर्या क्या हो, संघ से उनका संबंध कैसा हो, शासन हितैषी से या बहिष्कृत, अविनीत, बहिर्भूत व्यक्तियों से संपर्क, संसर्ग कैसा रखा जाये, श्रावकों को संघीय मर्यादाओं के प्रति जानकारी व निष्ठा कैसे रहे-आदि विषयों पर दिशा-निर्देश हैं । हजारी के दिन वे मर्यादाएं व्याख्यान में भरी परिषद् में सुनाई जाती हैं व साधु-साध्वीगण त्याग का घोष समवेत स्वर से करते
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