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७८ हे प्रभो ! तेरापंथ
जीवन के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी 'शासन समुद्र, भाग ' (लेखक मुनिश्री नवरत्नमलजी) से की जा सकती है।
श्रावक समाज ... श्रीमद जयाचार्य के शासनकाल में श्रावक समाज का बहुत उज्ज्वल इतिहास रहा है। ऐसा लगता था कि समूचे देश में श्रावकगण भी तेरापंथ की धर्मक्रांति को आगे बढ़ाने व उसमें निखार लाने में किसी प्रकार आचार्यों अथवा साधुसाध्वियों से पीछे नहीं रहे । उनमें से कतिपय श्रावकों की सूची इस प्रकार है१. मयाचन्दजी अग्रवाल -रतलाम निवासी, दृढ़धर्मी, तत्त्वज्ञ व चर्चावादी। २. लिछमणदासजी खारड़ (जयपुर)- धर्मनिष्ठ, माणकगणि के बड़े बाप व
प्रेरक। ३. किशनलालजी खंडेलवाल (जयपुर)- धर्मभीरू, विरागी व मृदुभाषी। ४. मन्नालालजी काला (जयपुर)- आशुतोष, चर्चावादी व गीतकार । ५. भोपजी सिंघी (भीलवाड़ा)--शासन-हितैषी, श्रद्धालु व एकनिष्ठाशील। ६. पन्नराजजी लूणिया (जयपुर)--श्रीमद् जयाचार्य से सट्टा खेलने का त्याग
किया व आजीवन निभाया । अत्यन्त विश्वासी मित्र व सौजन्यशील। ७. सुखराजजी भण्डारी (जोधपुर)-संघ-हितैषी, दृढ़ निष्ठावान व प्रसिद्ध
कवि । आचार्यों व साधुओं की संस्तुति में ही काव्य-कला का उपयोग। उनका प्रसिद्ध दोहा है
'चाहत सिर स्पर्शन चरण, परश्रुति चाहत बैन,
जीभ जपत गुण जीतरा, दर्शन चाहत नैन । ८. रामचंदजी कोठारी (जयपुर)- प्रथम श्रावक, निपुण व्यापारी, जागरूक। ६. सरदारमलजी लूणिया (जयपुर)- सम्मानित समाजसेवी व धार्मिक। १०. विरधीजी कोठारी (गोगुंदा)-निर्भीक, दृढ़-व्रती, शासनसेवी। ११. भैरूलालजी सींघड़ (जयपुर)-नीतिवान, चतुर, सेवाभावी व विश्वस्त।
आपकी हवेली में आचार्यों, साधुओं, साध्विओं के अनेक चातुर्मास हुए।
श्रीमद् जयाचार्य ने वहीं देह-त्याग किया। १२. गंभीरमलजी सिंघी (भीलवाड़ा)- त्यागी, प्रत्याख्यानी एवं विश्वस्त
श्रावक। १३. राहीरामजी अग्रवाल (सिसाय)-हरियाणा के आद्य श्रावक, उत्कृष्ट
धार्मिक। १४. लालचन्दजी पाटणी (लाडनूं)-लाडनूं के प्रथम श्रावक, तत्त्वज्ञ, संघ
समर्पित। १५. उत्तमचन्दजी बैगानी (बीदासर)-निर्भीक, सम्मानित एवं गुरुभक्त ।
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