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तेरापंथ का निर्माण व युवाकाल में प्रवेश ६६
विहार नहीं हो सका व संवत् ११३८ का चातुर्मास जयपुर में ही हुआ । चातुर्मास के प्रारम्भ से ही अस्वस्थता बढ़ने लगी । आप लाला भैरूलालजी सींघड की हवेली में विराज रहे थे कि सहसा लालाजी रोगग्रस्त हो गए । जयाचार्य ने उन्हें दो बार दर्शन दिए तथा परिणामों में उच्च भावना भरी, पर रात को वे दिवंगत हो गए । जयाचार्य स्थान बदलकर सरदारमलजी लूणिया की हवेली में आ गए, पर आप स्वयं दुर्बल हो गए व आहार- रुचि कम हो गई । आपने स्वल्प औषधि पानी को छोड़कर स्वाध्याय को अपना संबल बना लिया व आत्म-साधना में पूर्णतः लीन रहने लगे । उन्हीं दिनों आपने साधुओं व श्रावकों को कई अमूल्य शिक्षाएं
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दीं। फिर आपने सागारी अनशन कर लिया । अनशन की बात फैलते ही देश भर से श्रावक समाज दर्शनार्थ उमड़ पड़ा। भादवा वदि १२ को भीमराजजी पारख राजगढ़ वालों ने नाड़ी परीक्षा कर आयुष्य की स्थिति का बोध कराया, तब युवाचार्यश्री ने आपको प्रातः ९१.२५ बजे तिविहार व सायंकाल ६ बजे लगभग चौविहार अनशन करवा दिया। थोड़े ही समय बाद दो-तीन हिचकी आयीं व आपने आंखें खोलकर उसी अवस्था में देह - परित्याग कर दिया ।
संवत् १९३८ की भादवा वदि १२ को सायंकाल में तेरापंथ के एक तेजस्वी युगप्रवर्तक आचार्य का स्वर्गवास हुआ और सारा विश्व भारतीय संत परंपरा के उस तेजोमय नक्षत्र के प्रकाश-पुंज से वंचित हो गया। दूसरे दिन जयपुर राजघराने से अनुमति प्राप्त कर बैकुंठी में बिठाकर मुख्य बाजारों से होती हुई अजमेरी गेट तक आपकी शव यात्रा निकाली गई, जिसमें हजारों व्यक्ति सम्मिलित हुए। राज्य की ओर से हाथी, घोड़े, सिपाही, नगाड़े निशान आदि का लवाजमा साथ रहा । दाह-संस्कार सरदारमलजी लूणिया के बाग में हुआ, जहां चबूतरा बनाया गया । अब वह स्थान रामनिवास बाग में है और चबूतरे पर भव्य संगमरमर की छवि का निर्माण हो चुका है। श्रद्धा के अतिरेक में कई जैन- जैनेतर लोग उस छत्री पर अब तक पूजा-अर्चना करते हैं व मनौती मनाते हैं ।
अन्तर्मुखी साधना
श्रीमद् जयाचार्य का समूचा जीवन अंतश्चेतना के जागरण का प्रतीक था । अनेक बार उपसर्ग उपस्थित होने पर उन्होंने अपनी साधना के बल पर ही उसका शमन कर दिया । संवत् १९१३ की माघ शुक्ला पंचमी को उन्होंने सिरीयारी में 'भिक्षु भारीमाल ऋषिरायजी, खेतसीजी सुखकारी' स्तुति की रचना की । उसमें पांच प्रमुख तपस्वी संत अमीचंदजी ( अ ), भीमजी ( भी ), राममुखजी (रा), शिवजी (शि), कोदरजी ( को ) का स्मरण किया। कुछ समय बाद जब आप कंटालिया थे, तब सन् १८५७ के गदर के दिनों वहां गोरों की फौज के हमले की
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