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६६ हे प्रभो ! तेरापंथ
उनकी क्या आकांक्षा है ? धर्म प्रचार में उनकी कैसी गति रही व उसमें क्या सुधार, परिवर्तन, परिवर्धन अपेक्षित है ? आचार्यप्रवर संघ के किसी सदस्य की खामी देखते हैं तो उसे दंड प्रायश्चित देकर शुद्ध करते हैं । किसी ने अच्छा कार्य किया हो, तो उसे सम्मानित कर उसका उत्साह बढ़ाते हैं । इस अवसर पर साधुसाध्वियों की अलग व सामूहिक गोष्ठियों में आचार-विचार की पवित्रता, मर्यादा और अनुशासन की पालना, सामयिक विषय व परिस्थितियों पर प्रकाश डाला जाता है तथा चिंतन व विचार-मंथन चलता है । आम जनता के सामने दार्शनिक, साहित्यिक, आगमिक विषयों पर आचार्यप्रवर व विद्वान साधु-साध्वी भाषण व शिक्षा देते हैं । सप्तमी के दिन बड़ी हाजरी में सबसाधु-साध्वी खड़े होकर विश्वसनीयता की शपथ लेते हैं । यह दृश्य सचमुच बड़ा आनन्ददायक व मनोहारी होता है । सप्तमी के दिन आचार्यप्रवर स्वामीजी द्वारा लिखित मर्यादा-पत्र का वाचन करते हैं व सामूहिक शिक्षा देते हैं । विभिन्न क्षेत्रों से आये हुए साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका संस्तुति व प्रार्थनाएं करते हैं । मर्यादा महोत्सव का मुख्य आकर्षण चातुर्मासों की घोषणा होता है। हजारों लोग अपने-अपने क्षेत्रों का भाग्य-निर्धारण सुनने को बहुत आतुर होते हैं । ज्योंही आचार्यप्रवर किसी साधु-साध्वी को अमुक क्षेत्र के चातुर्मास की वंदना करने की घोषणा करते हैं, त्योंही वातावरण प्रसन्नता से खिल उठता है । आचार्यश्री के स्वयं चातुर्मास या आगामी विहार की घोषणा भी इसी अवसर पर होती है । मर्यादा महोत्सव का दिन एक तरह से परीक्षाफल के घोषणा दिन की तरह सबको उत्कंठित बनाये रखता है ।
मर्यादा महोत्सव की विधिवत् स्थापना संवत् १९२१ में बालोतरा में हुई । उस वर्ष का पट्टोत्सव पचपदरा मनाया गया व बालोतरा वालों के भक्ति-भरे निवेदन पर मर्यादा - महोत्सव का विशेष कारणों से अलग वरदान बालोतरा को मिला । इस महोत्सव के आकार, प्रकार, कार्यक्रम व गतिविधियों में प्रतिवर्ष अभूतपूर्व वृद्धि होती रही है ।
सेवाकेन्द्र की स्थापना
आपने वृद्ध, रोगी, ग्लान, अपंग साध्वियों की सेवा-परिचर्या के लिए एक स्थायी सेवाकेन्द्र की लाडनूं में संवत् १६१४ में स्थापना की व प्रतिवर्ष एक सिंघाड़े को मात्र उनकी सेवा के लिए भेजने की व्यवस्था कर दी । इससे संघ के साध्वियों की चित्त -समाधि सुस्थिर रहने में बड़ा योग मिला। सेवार्थी साध्वियों की संख्या में वृद्धि हो जाने से कुछ वर्षों से दो सिंघाड़े भेजे जाते हैं ।
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