________________
तेरापंथ का निर्माण व युवाकाल में प्रवेश ६५ हैं। इसके बाद वे एक लेखपत्र का उच्चारण करके संघ व संघपति में अपनी निष्ठा व संयम-साधना का संकल्प प्रकट करते हैं ।
साध्वियों के नये सिंघाड़े (दल)
श्रीमद् जयाचार्य के पूर्व साध्वियों के सिंघाड़ों की व्यवस्था ठीक नहीं थी। जिसके पास या जिसकी प्रेरणा से किसी ने दीक्षा ली तो वह साध्वी उसी के पास रहती। इससे कुछ सिंघाड़ों में बहुत अधिक तो कुछ में बहुत कम संख्या ही रह पायी।
संवत् १९१० में 'साध्वी-प्रमुखा' पद का सृजन करके आपने 'सरदार सती' को 'साध्वी-प्रमुखा' नियुक्त किया व साध्वियों की समुचित व्यवस्था का भार सौंपा । सरदार सती स्वयं एक प्रखर अनुशास्ता व उत्कृष्ट साधक थी। उनके अथक प्रयास से धीरे-धीरे सभी सिंघाड़े उनके नियंत्रण में आ गये । संवत् १९१४ में प्रत्येक सिंघाड़े में चार या पांच साध्वियों का दल बनाकर उस समय के दस सिंघाड़ों को यथावत् रखते २३ नये सिंघाड़े बने। इस तरह प्रचार का एक गुरुतर कार्य संपन्न हो गया। तीन महोत्सवों की स्थापना
श्रीमद् जयाचार्य ने पट महोत्सव, आचार्य भिक्षु चरमोत्सव व मर्यादामहोत्सव की स्थापना की। पट्ट महोत्सव वर्तमान आचार्य के पट्टाभिषेक के अवसर पर उनकी संस्तुति करने व आचार्य द्वारा नयी घोषणाएं करने व अपने कार्य को पर्यावलोचन करने के उपलक्ष में मनाया जाता है । श्रीमान् जयाचार्य के समय में यह पट्टोत्सव माघ शुक्ला पूर्णिमा को मनाया जाता रहा।
भिक्षु चरमोत्सव तेरापंथ के आद्य प्रवर्तक भिक्षु स्वामी की स्मृति में मनाया जाने लगा। उस दिन तेरापंथ के इतिहास व स्वामीजी के जीवन-संस्मरणों की स्मृति की जाती है व नयी प्रेरणा प्राप्त करने का संकल्प लिया जाता है। यह महोत्सव चातुर्मासकाल में भादवा सुदी १३ को मनाया जाने लगा। इन दोनों महोत्सवों से अधिक व स्थायी महत्त्व का काम मर्यादा महोत्सव मनाने का रहा। स्वामीजी द्वारा अंतिम व निर्णायक विधान माघ शुक्ला सप्तमी को लिखे जाने के उपलक्ष में प्रतिवर्ष यह महोत्सव उसी तिथि को मनाया जाने लगा। चातुर्मास संपन्न करने के बाद लगभग सभी साधु-साध्वी आचार्यप्रवर के निर्देशानुसार घोषित स्थान पर पाद-विहार करते एकत्रित हो जाते हैं । आचार्यप्रवर प्रत्येक सिंघाड़े से साक्षात्कार कर इस बात का पूरा विवरण प्राप्त करते हैं कि वे कहांकैसे रहे, वहां के लोगों की प्रकृति व आस्था कैसी है ? उनके आपस में सौहार्द कैसा रहा? कब क्या व्यक्तिगत व सामाजिक कठिनाइयां आयीं ? आगे के लिए
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org