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६० है प्रभो ! तेरापंथ
ऋषिराय से अनुज्ञा प्राप्त की । संवत् १८८१ में जयपुर में दिल्ली के कृष्णचन्दजी माहेश्वरी व चतुर्भुजजी ओसवाल ने आपसे प्रभावित होकर तेरापंथ की श्रद्धा स्वीकार की थी, पर बाद में उनका सम्पर्क नहीं रह पाया था । दिल्ली में आपने संवत् १८८६ का चातुर्मास किया । अनेक धार्मिक चर्चा-वार्ताओं से जनता को प्रभावित किया । कृष्णचन्दजी माहेश्वरी ने चातुर्मास की सम्पन्नता पर आपसे दीक्षा संस्कार ग्रहण किया। दिल्ली की प्रभावक यात्रा कर मुनिश्री ने मेवाड़ में श्रीमद् ऋषिराय के दर्शन किए। वहां से श्रीमद् ऋषिराय के साथ कच्छ, सौराष्ट्र, गुजरात की यात्रा की व संवत् १८६० का चातुर्मास बालोतरा किया । आपके जीवन की यह एक बहुत बड़ी ऐतिहासिक यात्रा थी, जिसमें एक वर्ष में सात सौ कोस (लगभग २२०० किलोमीटर) का विहार हुआ । दिल्ली से लेकर गुजरात तक का स्पर्श हुआ। बालोतरा चातुर्मास में आपने श्री पूज्यजी के उपाश्रय में अनेक तात्त्विक चर्चाएं कीं। सैकड़ों लोगों ने आपकी श्रद्धा स्वीकार की । बड़ी चौबीसी की १८ गीतिकाओं व अनेक तात्त्विक संस्तुतियों की यहीं रचना हुई । जसोल की 'धके जाओ' की घटना इस चातुर्मास के पूर्व की है, जिसमें अकेले गांव में जाने पर आपको स्थान या आहार -पानी नहीं दिया गया । 'धके जाओ' कहा जाता रहा । संघीय संस्कारों की प्रतिबद्धता का यह अनोखा उदाहरण था । बाद में परिचय पाने पर तो श्रावकों ने क्षमायाचना की। संवत् १८६२ में लाडनूं चातुर्मास में लालचन्दजी पाटणी ( सरावगी ) आदि अनेक प्रमुख व्यक्ति आपके प्रति श्रद्धाशील बने । संवत् १८६३ के बीकानेर पावस- प्रवास में नथमलजी आदि कई व्यक्ति तेरापंथ के अनुयायी बने । पूरे क्षेत्र में अच्छी जागृति आयी ।
युवाचार्य पद पर
संवत् १८९३ के आसाढ़ महीने में नाथद्वारा में श्रीमद् ऋषिराय ने एक विशेष घटना से प्रेरणा पाकर आपको परम विनीत, संगठनकर्ता, विश्रुत विद्वान आदि सभी गुणों से सम्पन्न व योग्य समझकर प्रच्छन्न रूप से उत्तराधिकारी घोषित कर नियुक्ति पत्र मुनिश्री स्वरूपचन्दजी को सौंप दिया। आप पाली चातुर्मास करके फलौदी खींचन की ओर पधार गए थे, जहां आपको दो साधुओं ने श्रीमद् ऋषि राय के दो पत्र (जिनमें एक बन्द लिफाफे में नियुक्ति पत्र था) लाकर दिए व शीघ्र मेवाड़ पधारने का निवेदन किया। आपने मार्ग में कहीं एक रात्रि से अधिक न ठहरने का संकल्प लेकर त्वरित गति से विहार कर नाथद्वारा में श्रीमद् ऋषिराय के दर्शन किए, जहां आपके युवाचार्य पद की घोषणा की गई । सारे संघ में भावी योग्य संघपति पाकर अत्यन्त आह्लाद हुआ । आप लगभग चौदह वर्ष युवाचार्य रहे पर आपके चातुर्मास आदि आचार्य महाराज से अलग ही हुए। आप स्वतन्त्र रहकर भी बड़ा व्यापक धर्म प्रचार करते रहे । लाडनूं, चुरू,
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