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तेरापंथ का निर्माण व युवाकाल में प्रवेश
चतुर्थ आचार्य श्रीमद् जयाचार्य
(संवत् १९०८ से १९३८)
जन्म एवं वंश-परिचय श्रीमद् जयाचार्य का जन्म संवत १८६० की आसोज सुदि १४ को जोधपुर डिवीजन (मारवाड़) के पाली जिले में रोयट गांव में हुआ था। आपके पिता का नाम आईदानजी गोलछा व माता का नाम कल्लजी था। बचपन में आपका नाम जीतमल रखा गया।
आचार्य भिक्षु जैन जगत् के साक्षात सूर्य थे । वे संवत् १८६० के भादवा सुदि १३ को स्वर्गवासी हुए। उसके ठीक एक माह बाद आपका जन्म हुआ और लगा मानो एक सूर्य के अस्त होने पर दूसरे सूर्य का उदय हुआ हो। आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ को जन्म दिया। बीजारोपण कर उसका पौधा लहलहाया तो आपने तेरापंथ को निश्चित आकार देकर निर्माण किया। पौधे को साज-सँवार कर सुन्दर वृक्ष बनाया । आचार्य भिक्षु ने जिस संघ की नींव डाली, उसे आपने भव्यता प्रदान की। आचार्य भिक्षु विशिष्ट मान्यताओं के सूत्रकार थे तो आप उसके प्रशस्त भाष्यकार या व्याख्याकार हुए। आचार्य भिक्षु की अध्यात्म की साक्षात् अनुभूति को आपने प्रखर अभिव्यक्ति दी । तेरापंथ धर्म-संघ का वर्तमान स्वरूप श्रीमद् जयाचार्य की ही श्रम-निष्ठा, बुद्धि-कौशल एवं दूरदर्शिता का परिणाम है। श्रीमद् जयाचार्य ने इस बात पर हर्ष प्रकट किया कि आचार्य भिक्षु द्वारा सत्यक्रांति की धारा प्रवाहित करने के बाद उनका जन्म हुआ । उन्हें सत्य का सहज साक्षात् हो गया। आप जब गर्भ में थे, तब स्वामीजी का विहरण पाली जिले में ही हुआ। स्वामीजी की अन्तिम अवस्था का आपने जो सजीव चित्रण प्रत्यक्षदर्शी की तरह किया है, उससे यह संभावना बनती है कि आपने अवश्य अपनी गर्भावस्था में स्वामीजी के साक्षात् दर्शन किए होंगे। उनकी अमृतवाणी का अपनी माता के माध्यम से प्रसाद पाया होगा। आपका शरीर कृश, अंग-प्रत्यंग सुदृढ़ व वर्ण श्याम
१. जयाचार्य की रचनाओं के आधार पर मेरा अपना अभिमत ।
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