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तेरापंथ का उदयकाल
३५.
छूते हुए, इन मान्यताओं को विद्वज्जनों व जनसाधारण के सामने व्यापक आधार पर रखा, तब से आलोचना का स्तर सुधरा है, व उसकी आंच मंद पड़ी है । इन मान्यताओं पर विशद व प्रामाणिक विवेचन युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ द्वारा लिखित 'भिक्षु विचार दर्शन' में उपलब्ध है । 'भिक्षु ग्रन्थ रत्नाकर - प्रथम खण्ड में स्वामीजी की सैद्धान्तिक काव्य रचनाओं का संग्रह है । उसको पढ़ने से स्वामीजी के मानस, विचार शैली व आत्म-स्फुरणा से सहज ही साक्षात्कार हो सकता है ।
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