Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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क्रं.
विषय
३८. मेघकुमार द्वारा भगवान् की पर्युपासना १०७
३६. दीक्षा की भावना का उद्भव
१०८
१०६
१११
११२
११६
४०. प्रव्रज्या का संकल्प
४१. माता-पिता से निवेदन
४२. माता की भाव-विह्वलता
४३. ऐहिक भोग : असार नश्वर
४४. एक दिवसीय राज्याभिषेक ४५. संयमोपकरण की अभ्यर्थना
४६. प्रव्रज्या की पूर्व भूमिका
४७. अनगार-दीक्षा
४८. मेघकुमार का उद्वेग
४६. प्रतिबोध हेतु पूर्वभव का आख्यान
.१२३
१२६
१२८
१४०
१४३
१४७
१५६
५०. जाति स्मरण ज्ञान का उद्भव ५१. विशाल मंडल की संरचना
१५८
५२. मेरुप्रभ द्वारा अनुकम्पा एवं फल प्राप्ति १६३
५३. उपालम्भपूर्ण उद्बोधन
१६६
५४. संयम - संशुद्धि:: पुनः प्रव्रज्या
१६८
५५. भिक्षु प्रतिमाओं की आराधना
१७१
५६. गुणरत्न संवत्सर तप की आराधना
१७६
५७. समाधि मरण
१८२
१८६
१६१
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५८. देवत्व प्राप्ति
५६. अंततः सिद्धत्त्व लाभ
संघाट नामक द्वितीय अध्ययन
६०. धन्य सार्थवाह: परिचय
६१. कुख्यात चोर विजय ६२. निःसंतान भद्रा की चिन्ता
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पृष्ठ क्रं. ६३. देव-पूजा
विषय
६४. पुत्र-लाभ
६५.
६६.
बाल क्रीड़ा
देवदत्त का अपहरण एवं हत्या
६७. वृत्तांत की गवेषणा
६८. चोर की गिरफ्तारी एवं सजा
६६. देवदत्त का अंतिम क्रिया-कर्म
७०. धन्य सार्थवाह : राजदण्ड
७१. कारागार में सार्थवाह के घर भोजन
७२. भोजन का हिस्सा देने की बाध्यता
७३. भद्रा की नाराजगी
७४. कारागृह से मुक्ति
७५. मित्रों एवं स्वजनों द्वारा सत्कार
७६. भद्रा : कोप शांति
७७.
विजय चोर की दुर्गति
७८. स्थविर धर्मघोष का पदार्पण
७६. धन्य सार्थवाह द्वारा उपदेश श्रवण
८०. प्रव्रज्या एवं स्वर्ग प्राप्ति
८१. उपसंहार
अंडक नामक तीसरा अध्ययन
८२. जंबूस्वामी का प्रश्न
८३. आर्य सुधर्मा का उत्तर
८४. मयूरी प्रसव
१६५
८५. दो अनन्य मित्र
१६७ ८६. यावज्जीवन साहचर्य की प्रतिज्ञा
२०१ ८७. गणिका देवदत्ता
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पृष्ठ
२०४
२०५
२०८
२०६
२१२
२१४
२१६
२१६
२१७
२१६
२२१
२२२
२२२
२२३
२२५
२२६
२२७
२२७
२२८
२३१
२३१
२३२
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