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Om विचारवान अर्जुन और युद्ध का धर्मसंकट
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महारथी, कौन-कौन महायोद्धा इकट्ठे हैं। इससे वह शुरू कर रहा भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिंजयः । है। यह बड़ी प्रतीक की, बड़ी सिम्बालिक बात है। साधारणतः शत्रु अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्थैव च ।।८।। की प्रशंसा से बात शुरू नहीं होती। साधारणतः शत्रु की निंदा से अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः । बात शुरू होती है। साधारणतः शत्रु के साथ अपनी प्रशंसा से बात नानाशस्त्र प्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः ।।९।। शुरू होती है। शत्रु की सेना में कौन-कौन महावीर इकट्ठे हैं, एक तो स्वयं आप और पितामह भीष्म तथा कर्ण और दुर्योधन उनसे बात शुरू कर रहा है।
संग्रामविजयी कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा, विकर्ण दुर्योधन कैसा भी व्यक्ति हो, इनफीरिआरिटी कांप्लेक्स से और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा, और भी बहुत से शूरवीर पीड़ित व्यक्ति नहीं है, हीनता की ग्रंथि से पीड़ित व्यक्ति नहीं है। अनेक प्रकार के शस्त्र-अस्त्रों से युक्त मेरे लिए जीवन की
और यह बड़े मजे की बात है कि अच्छा आदमी भी अगर हीनता आशा को त्यागने वाले सबके सब युद्ध में चतुर हैं। की ग्रंथि से पीड़ित हो तो उस बुरे आदमी से बदतर होता है, जो अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् । हीनता की ग्रंथि से पीड़ित नहीं है। दूसरे की प्रशंसा से केवल वही पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् ।। १० ।। शुरू कर सकता है, जो अपने प्रति बिलकुल आश्वस्त है।
___ अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः। यह एक बुनियादी अंतर सदियों में पड़ा है। बुरे आदमी पहले भी भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ।।११।। थे, अच्छे आदमी पहले भी थे। ऐसा नहीं है कि आज बुरे आदमी और भीष्म पितामह द्वारा रक्षित हमारी वह सेना सब प्रकार बढ़ गए हैं और अच्छे आदमी कम हो गए हैं। आज भी बुरे आदमी से अजेय है और भीम द्वारा रक्षित इन लोगों की यह सेना उतने ही हैं, अच्छे आदमी उतने ही हैं। अंतर क्या पड़ा है? जीतने में सुगम है। इसलिए सब मोचों पर अपनी-अपनी · निरंतर धर्म का विचार करने वाले लोग ऐसा प्रचार करते रहते जगह स्थित रहते हुए आप लोग सब के सब ही निःसंदेह हैं कि पहले लोग अच्छे थे और अब लोग बुरे हो गए हैं। ऐसी भीष्म पितामह की ही सब ओर से रक्षा करें। उनकी धारणा, मेरे खयाल में बुनियादी रूप से गलत है। बुरे आदमी सदा थे, अच्छे आदमी सदा थे। अंतर इतना ऊपरी नहीं है, अंतर बहुत भीतरी पड़ा है। बुरा आदमी भी पहले हीनता की ग्रंथि से प्रश्नः भगवान श्री, श्रीमद्भगवद्गीता में सारा भार पीड़ित नहीं था। आज अच्छा आदमी भी हीनता की ग्रंथि से पीड़ित अर्जुन पर है और यहां गीता में दुर्योधन कहता है, है। यह गहरे में अंतर पड़ा है।
पांडवों की सेना भीम-अभिरक्षित और कौरवों की आज अच्छे से अच्छा आदमी भी बाहर से ही अच्छा-अच्छा है, भीष्म...। तो भीष्म के सामने भीम को रखने का भीतर स्वयं भी आश्वस्त नहीं है। और ध्यान रहे, जिस आदमी का खयाल क्या यह नहीं हो सकता कि दुर्योधन अपने आश्वासन स्वयं पर नहीं है, उसकी अच्छाई टिकने वाली अच्छाई | प्रतिस्पर्धी के रूप में भीम को ही देखता है? नहीं हो सकती। बस, स्किनडीप होगी, चमड़ी के बराबर गहरी होगी। जरा-सा खरोंच दो और उसकी बुराई बाहर आ जाएगी। और जो बुरा आदमी अपनी बुराई के होते हुए भी आश्वस्त है, उसकी ग ह बिंदु विचारणीय है। सारा युद्ध अर्जुन की धुरी पर बुराई भी किसी दिन बदली जा सकती है, क्योंकि बहुत गहरी 4 है, लेकिन यह पीछे से सोची गई बात है—युद्ध के अच्छाई बुनियाद में खड़ी है-वह स्वयं का आश्वासन। ___बाद, युद्ध की निष्पत्ति पर। जो युद्ध के पूरे फल को
इस बात को मैं महत्वपूर्ण मानता हूं कि दुर्योधन जैसा बुरा | | जानते हैं, वे कहेंगे कि सारा युद्ध अर्जुन की धुरी पर घूमा है। लेकिन आदमी एक बहुत ही शुभ ढंग से चर्चा को शुरू कर रहा है। वह जो युद्ध के प्रारंभ में खड़े थे, वे ऐसा नहीं सोच सकते थे। दुर्योधन विरोधी के गुणों का पहले उल्लेख कर रहा है, फिर पीछे अपनी के लिए युद्ध की सारी संभावना भीम से ही पैदा होती थी। उसके सेना के महारथियों का उल्लेख कर रहा है।
कारण थे। अर्जुन जैसे भले व्यक्ति पर युद्ध का भरोसा दुर्योधन भी नहीं कर सकता था। अर्जुन डांवाडोल हो सकता है, इसकी